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एक तितली की उड़ान

 

बढ़ती गयी एक तितली फूलों की तलाश में
दौड़ती उसकी आँखें धरती और आकाश में
इतनी लम्बी उड़ान बिना मंज़िल का पता लिये
तितली के पंखों को थकाती रही
रास्ते भर सोचे कि फूलों को यूँ सुनाऊँगी 
जब सामने आयेंगे तो ऐसे कुछ हाल बताऊँगी
अपने पंखों से उनकी पंखुड़ियाँ मिला के
पूछूँगी कि मेरा रास्ता इतना कठिन क्यूँ रखा? 
यही सोच बढ़ी तितली फूलों की तलाश में
चहचहाती नज़रें धरती और आकाश में। 
 
फूलों के अब कई सावन आ के चले गये
तितली के पंखों के रंग धुँधलाते चले गये
ख़ुद को समझाये कि जब फूलों से मिल जायेगी
हर रास्ते की अड़चन बस एक याद बन जाएगी 
आख़िरकार पहुँची तितली उन फूलों के पास में
जिनकी राह बाटी थी उसने इतनी आस में
जिनके लिए उड़ते-उड़ते उसके पंख बदरंग हो गए
आज तितली के सामने वहीं फूल खिल रहे थे
पर उसके पंख आज आगे नहीं बढ़ रहे थे
वो ना थमना चाहती थी, ना रुकना चाहती थी, 
तो मुड़ कर फिर उड़ी तितली वापस एक तलाश में, 
उसको भरनी थी और उड़ानें धरती और आकाश में।
 
क्योंकि कुछ तितलियों की मंज़िल फूल तक नहीं होती
क्योंकि कुछ तितलियों की पहचान पंखों के रंग तक नहीं होती 
उड़ती हैं कुछ तितलियाँ राहों की ख़ुशबू के लिए
और खोलती है पंख बस नज़ारों से गुफ़्तुगू के लिए 
तो अब रोज़ निकलती है तितली नई उड़ानों की तलाश में
और निहारने नए नज़ारे धरती और आकाश में।

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