गृहणी
काव्य साहित्य | कविता अर्चना लखोटिया1 Mar 2022 (अंक: 200, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
बहुत कड़वा है यह अनुभव, सोच और सच्चाई का।
दोष किसका है यहाँ पर, केवल अपने आप का।
सब को सुला कर सोना, सबसे पहले जागना।
सबको ख़ुश रखना पर अपना ही ध्यान न रखना॥
सास ससुर पति और बच्चे बस परिवार को सँभालना।
फ़रमाइशें पूरी करते, अपने अरमानों को कुचलना।
कर रही हूँ हद से बढ़ कर, नहीं है जिसका कोई मोल।
घर में उसको कौन चुका सकता, जो है पूर्णतः अनमोल॥
तभी तो कहा गया है
सम्पूर्ण गृह है जिसका ऋणी।
वही तो कहलाती है गृहणी॥
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