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हृदय परिवर्तन

"अच्छा माँ, मैं चलता हूँ ऑफ़िस के लिए लेट हो रहा हूँ। शाम को थोड़ा लेट आऊँगा आप और पापा टाइम से डिनर कर लेना," अंकित ने ऑफ़िस का बैग हाथ में पकड़ते हुए कहा।

"ठीक है बेटा, घर आते टाइम कुछ सामान भी लेते आना। समान के लिस्ट की पर्ची तुम्हारे बैग में रख दी है।"

"ओके माँ, बाय! लव यू!"

"अब आप भी चाय और नाश्ता कर लीजिये," विमला ने चाय नाश्ता टेबल पर रखते हुए कहा।

"चुनाव का समय आ गया और सभी टीवी चैनल बस जाति-धर्म के आधार पर वोटो की संख्या बताने में लगे पड़े हैं। जबकि हमें जाति धर्म से ऊपर उठकर योग्य उम्मीदवार का चयन करना चाहिए देश के विकास के लिए," चाय के चुस्की के साथ टीवी चैनल बदलते हुए राजेश बड़बड़ा रहा था। 

"आप भी सुबह-सुबह कौन सी बात लेकर चालू हो गए, ऐसा लगता है पूरे देश की फ़िक्र आपको ही है और सबसे बड़े नेता आप ही हो!"

"नेता नहीं, एक ज़िम्मेदार नागरिक ज़रूर हूँ। अच्छा, छोड़ो इन बातों को, तुम्हें नाश्ता नहीं करना क्या? जो ऐसे बैठी हो।"

"नहीं, आज मेरा मन नहीं है नाश्ते करने का।"

"क्या हुआ मन को, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?"

"हाँ, तबियत तो ठीक है, बस थोड़ी सी चिंता खाए जा रही है।"

"किस बात की चिंता, विमला!" चाय का प्याला रखते हुए राजेश ने पूछा ।

"कुछ नहीं, बस थोड़ा अंकित को लेकर . . . "

"क्यों, अब क्या किया तुम्हारे लाडले ने?" राजेश ने भौंहें तानते हुए पूछा।

"कुछ नहीं किया उसने। आप बस कमियाँ ढूँढ़ो उसमें।"

"कुछ नहीं किया तो फिर किस बात की चिंता खाए जा रही है तुम्हें?"

"हर माँ चाहती है कि उसकी संतान हमेशा खुशहाल रहे। अंकित की उम्र तीस हो गई है। इस उम्र में तो हमारे बच्चे स्कूल जाने लगे थे। और अभी तक अंकित की शादी भी नहीं . . . इसी बात की चिंता खाये जा रही मुझे; आख़िर एक माँ जो हूँ मैं," विमला ने लंबी साँस लेते हुए अपनी बात ख़त्म की।

"तुम्हारे लाडले को कोई लड़की पसंद आए तब तो बात आगे बने। न जाने किस हुस्न परी के ख़्वाब में है वह? पिछले हफ़्ते ही गाज़ीपुर वाले मामा ने किसी लड़की की फोटो बायोडाटा भेजा था। पर उसने तो साफ़ मना कर दिया। न जाने क्या समझता है ख़ुद को," राजेश ने ऊँची आवाज़ में अपनी बात को ख़त्म किया।

"जानती हूँ, एक पत्नी के नाते आपको भी और एक माँ के नाते अंकित को भी। आप को भी पता है कि वह रिया को पसंद करता है।"

"कौन रिया?" राजेश ने टीवी की आवाज़ कम करते हुए पूछा ।

"अरे वही रिया जो अपने तीसरी गली में रहती है। अंकित के साथ पढ़ती थी ऊपर से रिया भी अंकित को पसंद करती है। दोनों प्यार करते है एक दूसरे से," विमला ने कहा।

"कहीं तुम, गुप्ता जी के बेटी रिया की बात तो नहीं कर रही हो।"

"हाँ, मैं गुप्ता भाई साहब की छोटी बेटी रिया की बात कर रही हूँ, जिसने पिछले साल ही अपनी एमफिल की पढ़ाई ख़त्म की और सुंदरता के साथ-साथ समझदारी भी है उसमें। एक लाइन में कहें तो रूपवान के साथ-साथ गुणवान भी है रिया," विमला ने कहा।

"विमला, तुम्हें पता है, क्या कह रही हो तुम? वह हमारे बिरादरी में नहीं आती है। क्या कहेंगे समाज में चार लोग हमें, इसकी ज़रा भी समझ है तुम में?" राजेश ने कहा।

"क्या कहेंगे का क्या मतलब? थोड़ी देर पहले आप एक ज़िम्मेदार नागरिक के नाते कह रहे थे कि देश के विकास के लिए जाति-धर्म से ऊपर उठकर योग्य उम्मीदवार का चयन करना चाहिए। ठीक उसी तरह हमें लोगों की परवाह छोड़ एक ज़िम्मेदार माता-पिता होने के नाते अंकित की ख़ुशी के लिए उसकी पसंद रिया का चयन अपनी बहू के रूप में कर लेना चाहिए। जो शिक्षित होने के साथ-साथ रूपवान और गुणवान भी है," विमला अपनी बात ख़त्म करते हुए चाय का कप लेकर किचन की ओर चल पड़ी।

थोड़ी देर बाद राजेश भी किचन में पहुँचा और विमला के कंधे पर हाथ रखते हुए कहने लगा, "तुम्हारी बातों ने तो आज मेरे हृदय को परिवर्तित कर दिया। जब ईश्वर ने हम सभी को एक ही रंग का ख़ून दिया तो फिर हम ईश्वर के बनाए अनमोल इंसान को अलग-अलग जाति-धर्मों का रंग क्यों दें? कल ही मैं जाति-धर्म की परवाह किए बिना अंकित और रिया के रिश्ते की बात गुप्ता जी से करूँगा।"

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