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ईमानदारी और सादगी के प्रतीक थे शास्त्री जी 

देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर को शारदा प्रसाद और रामदुलारी देवी के घर उत्तर प्रदेश में मुगलसराय शहर के पास रामनगर में हुआ था। नेहरू जी के निधन के बाद शास्त्री जी देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने। शास्त्री जी के ईमानदारी और सादगी-पूर्ण जीवन के अनेक क़िस्से हैं—

पहला वाक़या ज़िक्र कर रहा हूँ, जब शास्त्री जी देश के प्रधानमंत्री थे, एक बार उनके बेटे सुनील शास्त्री जी ने रात कहीं जाने हेतु सरकारी गाड़ी लेकर चले गए और जब वापस आए तो लाल बहादुर शास्त्री जी ने पूछा कहाँ गए थे, सरकारी गाड़ी लेकर? इस पर सुनील जी कुछ कह पाते कि इससे पहले लाल बहादुर शास्त्री जी ने कहा कि सरकारी गाड़ी देश के प्रधानमंत्री को मिली है न कि उसके बेटे को, आगे से कहीं जाना हो तो सरकारी गाड़ी का प्रयोग न किया करो। शास्त्री जी यहीं नहीं रुके; उन्होंने अपने ड्राइवर से पता करवाया कि गाड़ी कितने किलोमीटर चली है और उसका पैसा सरकारी राज कोष में भी जमा करवाया। 

हमारे देश में आजकल जन प्रतिनिधियों के परिजनों के साथ उनके क़रीबी लोग भी उन्हीं के  सरकारी गाड़ी में घूमते हैं अपने व्यक्तिगत कार्यों के लिए।

दूसरा वाक़या ज़िक्र कर रहा हूँ, लाला लाजपतराय ने आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे ग़रीब देशभक्तों के लिए सर्वेंट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी बनायी थी, जो, ग़रीब देशभक्तों को पचास रुपये की आर्थिक मदद प्रदान करती थी। एक बार जेल से उन्होंने अपनी पत्नी ललिता जी को पत्र लिखकर पूछा कि क्या सोसाइटी की तरफ़ से 50 रुपये की आर्थिक मदद मिलती है उन्हें? जवाब में ललिता जी ने कहा हाँ, जिसमें से 40 रुपये में घर का ख़र्च चल जाता है। शास्त्री जी को ये पता चलते ही बिना किसी देर किये उन्होंने सर्वेंट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी को पत्र लिखा कि मेरे घर का ख़र्च 40 रुपये में हो जाता हैख। कृपया मुझे दी जानी वाली सहयोग राशि 50 रुपये से घटा कर 40 रुपये कर दी जाए ताकि ज़्यादा से ज़्यादा देशभक्तों को आर्थिक सहयोग मिल सके।

आज का युग में तो यदि जनप्रतिनिधियों के सैलरी बढ़ोत्तरी की बात हो तो क्या सत्ता पक्ष, क्या विपक्ष दोनों एक मत हो इस माँग पर अपना समर्थन दे देते हैं; भले ही राष्ट्रहित और समाज हित के मुद्दों पर ये लड़ते देखे जाएँ। ये भी नहीं सोचते आज के वर्तमान जनप्रतिनिधि कि वह तो सरकारी पैसे से मौज से जी रहे हैं और देश का किसान, मज़दूर इत्यादि ग़रीबी, महँगाई और अभाव की ज़िंदगी जी रहे हैं। 

क़िस्सों के दौर में आगे चलते हैं तो एक क़िस्सा और जुड़ा है शास्त्री जी से, शास्त्री जी जब प्रधानमंत्री थे और उन्हें मीटिंग के लिए कहीं जाना था। जब वह कपड़े पहन रहे थे तो उनका कुर्ता फटा था जिसपर परिजनों ने कहा आप नया कपड़ा क्यों नहीं ले लेते हैं? इस पर पलट कर शास्त्री ने कहा कि मेरे देश के अब भी लाखों लोगों के तन पर कपड़े नहीं हैं, फटा हुआ तो क्या हुआ; इसके ऊपर कोट पहन लूँगा, और फटा कपड़ा इस तरह कुछ दिन और काम में आ जायेगा।

ऐसे थे हमारे शास्त्री जी, आज के जनप्रतिनिधियों, मंत्रियों के सूट लाखों में आते हैं इन्हे इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता कि देश के लाखों लोगों की वार्षिक आय भी नहीं होगी लाखों रुपये।  

कथनी और करनी में समानता रखते थे शास्त्री जी

बात सन्‌ 1965 का जब भारत और पाकिस्तान का युद्ध चल रहा था और भारतीय सेना लाहौर के हवाई अड्डे पर हमला करने की सीमा के भीतर पहुँच गयी थी। घबराकर अमेरिका ने अपने नागरिकों को लाहौर से निकालने के लिए कुछ समय के लिए युद्धविराम की अपील की। उस समय हम अमेरिका की पीएल-480 स्कीम के तहत हासिल लाल गेहूँ खाने को बाध्य थे हम भारतीय। अमेरिका के राष्ट्रपति  ने शास्त्री जी को कहा कि अगर युद्ध नहीं रुका तो गेहूँ का निर्यात बंद कर दिया जाएगा। उसके बाद अक्टूबर 1965 में दशहरे के दिन दिल्ली के रामलीला मैदान में शास्त्री जी ने देश की जनता को संबोधित किया। उन्होंने देशवासियों से एक दिन का उपवास रखने की अपील की और साथ में ख़ुद भी एक दिन उपवास का पालन करने का प्रण लिया। देश के सीमा के रक्षक जवान और देश के अंदर अन्नदाता के लिए जय जवान, जय किसान का नारा दिया।  

10 जनवरी 1966 को ताशकंद में भारत के प्रधानमंत्री शास्त्री जी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच बातचीत करने का समय निर्धारित थी। लाल बहादुर शास्त्री और अयूब खान तय किये गये निर्धारित समय पर मिले। बातचीत काफ़ी लंबी चली और दोनों देशों के बीच शांति समझौता भी हो गया। ऐसे में दोनों मुल्कों के शीर्ष नेताओं और प्रतिनिधि मंडल में शामिल अधिकारियों का ख़ुश होना उचित था। लेकिन उस दिन की रात शास्त्री जी के लिए मौत बनकर आई। 10-11 जनवरी के रात में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की संदिग्ध परिस्थितों में मौत हुई। ताशकंद समझौते के कुछ घंटों बाद ही भारत के लिए सब कुछ बदल गया। विदेशी धरती पर संदिग्ध परिस्थितियों में भारतीय प्रधानमंत्री की मौत से सन्नाटा छा गया। शास्त्री जी की मौत के बाद तमाम सवाल खड़े हुए। उनकी मौत के पीछे साज़िश की बात भी कही जाती है; क्योंकि, शास्त्री जी की मौत के दो अहम गवाह उनके निजी चिकित्सक आर. एन. चुग और घरेलू सहायक राम नाथ की सड़क दुर्घटनाओं में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई तो यह रहस्य और गहरा हो गया।

देश के नागरिकों को चाहिए  की शास्त्री जी के मौत की निष्पक्ष जांच की मांग करें सरकार से, यही शास्त्री जी के प्रति देशवासियों की सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।

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