मेरा चाँद
कथा साहित्य | लघुकथा अंकुर सिंह1 Nov 2021 (अंक: 192, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
"छत पर जल्दी आओ, चाँद कहीं छुप न जाए।"
"पूजा की थाली तो ले लूँ, पता है आप भी तो व्रत पर हो, भूख लगी होगी आपको।"
"अरे नहीं यार, मौसम ख़राब है। बारिश होने लगेगी तो बादलों में छिप जायेगा तुम्हारा चाँद।"
"चलिए अब आप चाँद के सामने खड़े हो जाइए, मैं पूजा कर लेती हूँ।"
"ऐसे ही हमेशा ख़ुश रहना। अब चलो नीचे, होटल में मैंने खाने का ऑर्डर दे रखा है, पार्सल आता ही होगा।"
"क्यों, चाँद देखकर पानी नहीं पीना है आपको?"
"कौन कहता है, मेरा चाँद केवल छत से दिखता है, और ख़राब मौसम/समय में साथ छोड़ बादलों में छुप जाता है? अरे पगली, मेरा चाँद तो हमेशा मेरे साथ रहता है और आज कुछ ज़्यादा ही निखर रहा है मेरा चाँद।"
"हटिए, कुछ ज़्यादा ही तारीफ़ करते हैं आप मेरी।"
"अब शर्माओ मत चलो नीचे, खाने का पार्सल आ गया होगा। आज तो मुझे अपने चाँद के हाथों से खाना है।"
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