इच्छाओं की गगरी
काव्य साहित्य | कविता डॉ. विवेक कुमार20 May 2017
यह मेरा है
यह तेरा है
मोह माया का फेरा है।
जीवन तो
चंद दिनों का
डेरा है।
संबंधों
और रिश्तों का
यह तो बस एक
घेरा है।
लाख लिखे कोई
जीवन का काग़ज़
रहता कोरा है।
इच्छाओं की गगरी
भरे कैसे
यही तो बस
एक फेरा है।
इश्क़-जुनून और
रिश्तों की बगिया में मँडराता
स्वार्थ का भौंरा है।
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