कभी-कभी
काव्य साहित्य | कविता डॉ. विवेक कुमार6 Nov 2016
कभी-कभी किसी के
इक़रार और इनकार में
टिकी होती है
हमारे सपनों की गगनचुंबी इमारत।
टिकी होती हैं हमारे
जीने की सारी उम्मीदें
और काफ़ी हद तक प्रभावित होती है
हमारी कार्यक्षमता और कार्यकुशलता।
कभी-कभी छोटी-मोटी परेशानियों से
परेशान हो जाते हैं हम
आ जाती हैं उनकी सलामती की दुआएँ
हमारे होठों पर बरबस ही।
कभी-कभी आत्मिक सुकून मिलता है
सागर किनारे डूबते सूरज को देखकर
अच्छा लगता है किसी की
यादों और विचारों में खोये हुए
ख़ुद से बातें करते दूर बहुत दूर निकल जाना।
कभी-कभी उदासी और मायूसी के क्षणों में
अक्सर ही मुझे होता है
तुम्हारे साथ होने का भ्रम।
कभी-कभी असमय आ जाता है वसंत
फूट पड़ते हैं स्वप्नों की नयी-नयी कोंपले
गूँजने लगती है
कोयल की स्वर लहरी मन के उपवन में
किसी के स्मृतियों की दस्तक मात्र से।
कभी-कभी ही आना होता है तुम्हारा मेरे जीवन में
किंतु जब कभी-भी घिरा मैं
समस्याओं और संकटों के बीच
सारी समस्याओं के समाधान की
तरह मिली मुझे तुम...
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