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इंतज़ार

 

आज अध्यापक कक्षा में क़दम रखते ही बच्चों से बोले, “बच्चो! आज सभी अपने-अपने पिता जी को एक पत्र लिखेंगे। पत्र में अगले महीने पेरंट्स मीटिंग रखी गई है। इस बार हम किसी के पेरंट्स को कॉल या मैसेजेस नहीं करेंगे। आपकी बातें डाक के माध्यम से प्रेषित की जायेंगी। ये समझ लो कि पत्र लिखना तुम सबका आज का कक्षाकार्य है। क्यों बच्चों, सभी तैयार हो न?” सभी बच्चों ने हामी भरी। 

बच्चों ने पत्र लिखना प्रारंभ किया। थोड़ी देर बाद बच्चे बारी–बारी से अध्यापक को पत्र दिखाने लगे। अध्यापक बहुत ख़ुश थे। बच्चों के द्वारा लिखे मासूमियत भरे शब्द उन्हें बचपन की ओर आकर्षित कर रहे थे। कक्षा में घूमते हुए वे एक प्रिशा नाम की लड़की के पास पहुँचे। उसका पत्र अभी तक उनके पास नहीं आया था। 

तभी अध्यापक ने देखा कि प्रिशा पत्र लिख कर बार-बार फाड़ती जा रही है। उन्हें आश्चर्य हुआ। पूछा, “क्या बात है बेटा? प्रिशा, तुम ऐसा क्यों कर रही हो? बड़ी परेशान लग रही हो। बताओ प्रिशा, क्या बात है?” 

प्रिशा सुबकती हुई बोली, “सर जी! मेरे पापा जी तो भगवान जी के पास चले गए हैं। मैं उन्हें अपना पत्र कैसे भेजूँ? मुझे भगवान का एड्रेस नहीं मालूम। कुछ समझ नहीं आ रहा है। आप ही बताइए न सर जी। मेरा पत्र भगवान जी के पास कैसे पहुँचेगा?” धारा प्रवाह बोलती हुई प्रिशा का गला भर आया। प्रिशा की भीगी पलकें देख अध्यापक को बड़ा दुःख हुआ। उनके पास प्रिशा के लिए कोई जवाब नहीं था। प्रिशा अध्यापक के जवाब का इंतज़ार कर रही थी। 

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