मुर्गा बाँग लगाता है
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता प्रिया देवांगन ’प्रियू’1 Oct 2020 (अंक: 166, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
उठो प्यारे आँखें खोलो ।
सूरज दादा आये है॥
लाल लाल किरणों के संग में।
सब में आश जगाये है॥
मेरा मुर्गा है अलबेला।
जल्दी से उठ जाता है॥
कुड़कूँ कूँ आवाज़ लगा कर।
नया सन्देश लाता है॥
सुबह सुबह छत में चढ़ कर वह।
कुकड़ू कूँ चिल्लाता है॥
मुर्गी देखे मुर्गा राजा।
गीत नया वह गाता है॥
मुर्गियों का होता राजा।
सैर रोज़ वह करता है॥
चारे चुगता रहता दिनभर।
फिर आहें वह भरता है॥
सिर के ऊपर कलगी रखता।
दिन भर वह इठलाता है॥
कूड़े कचरे में जा कर के।
दाना खा कर आता है॥
चूज़ों को अपने संग लेकर।
बड़े मज़े से आता है॥
सुबह सुबह जल्दी उठ कर के।
मुर्गा बाँग लगाता है॥
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