पराया धन
कथा साहित्य | लघुकथा प्रिया देवांगन ’प्रियू’1 May 2020 (अंक: 155, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
चाँदनी एक छोटी सी लड़की थी। वह बहुत ही चुलबुली और शरारती थी। पर उसकी ये हरकत चाँदनी की दादी को बिल्कुल भी पसन्द नहीं थी। वह थोड़ी - थोड़ी बात पर उसको चिल्ला देती थी।
चाँदनी के घर में उसके दादा-दादी, मम्मी-पापा और उसका बड़ा भाई रहता था। चाँदनी के मम्मी-पापा घर बनवा रहे थे तो सभी ने तय कर लिया था कि कौन सा कमरा किसका रहेगा। तभी छोटी चाँदनी आयी और बोली, "दादी जी मेरा कमरा कौन सा है?"
दादी बहुत ग़ुस्से वाली थी वह चिल्ला कर बोली तू तो ’पराया धन’ है रे छोरी। तेरा कोई कमरा-वमरा न है।"
तभी चाँदनी दादी जी से पूछा, "आप हमेशा मुझे पराया धन क्यों कहती हो, वो क्या होता है?" ऐसा बोल कर रोने लगी।
ये सब बातें दादा जी पास बैठ कर सुन रहे थे। उन्होंने चाँदनी को पास बुला कर समझाया, "पराया धन बेटी को कहा जाता है। जब बेटी बड़ी हो जाती है तो उसका ब्याह कर के पराये घर भेज देते हैं।"
चाँदनी पलट के दादी से बोली, "दादी क्या आप भी पराया धन थे? आपका भी कोई घर न था।"
दादी चुपचाप वहाँ से चली गई। दादी के पास कुछ जवाब न था।
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