झूठ की आकुलता
काव्य साहित्य | कविता सूर्य कुमार15 Jun 2024 (अंक: 255, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
ज़ुबान
लड़खड़ाने लगी
झूठ
बड़बड़ाने लगा
बहुत दिया
तुम्हारा साथ
अब तो छोड़ो
मेरा हाथ
आजिज़
आ गया हूँ
थू-थू
हो रही है
चहुँ ओर
मेरी भी
तुम्हारे साथ
अब छोड़़ दो
मेरा हाथ
छोड़़ दो
मेरा हाथ
तुम्हारी
हो न हो पर
मेरी तो सीमा है
करने की
बरदाश्त
तुम्हारी
तो जायेगी
किन्तु
मेरी तो
ख़त्म
हो जायेगी साख
अब छोड़
दो मेरा हाथ
अब छोड़़ दो
मेरा साथ
नहीं छोड़ोगे
तो मैं छोड़़ दूँगा
चला जाऊँगा
साथ सच के
खोल दूँगा
तुम्हारी सारी
पोल-पट्टी
बचा लूँगा
अपनी साख
तुम्हारी
हो न हो
किन्तु
मेरी तो
कुछ इज़्ज़त है
मेरी सच्चाई तो
जानते हैं सब
करेंगे यक़ीन
मुझ पर
और मेरी
हर बात पर
यह धमकी
मत समझना
बख़्श दो
मेरी गरिमा
और
छोड़़ दो
मेरा हाथ
छोड़़ दो
मेरा साथ
अब
बहुत हो चुका
बस
बहुत हो चुका
अब छोड़ दो
मेरा हाथ!
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