काफ़ी है!
काव्य साहित्य | कविता अंकित सोमवंशी15 Oct 2023 (अंक: 239, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
माना दौलत का ढेर नहीं है,
हम तो धनद कुबेर नहीं है।
चलती है रोटी दाल और तुम,
पास मेरे हो,
काफ़ी है!
दुनिया भर में नाम नहीं है,
शोहरत वाला काम नहीं है।
कुछ हैं साथी यार और तुम,
साथ मेरे हो,
काफ़ी है!
दोमहला मकान नहीं है,
महँगा कुछ सामान नहीं है।
कुटिया में हैं राम और तुम,
ख़ास मेरे हो,
काफ़ी है!
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