कल फिर सुबह होगी . . .
काव्य साहित्य | कविता अनिल कुमार15 Mar 2022 (अंक: 201, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
एक और दिन
गुज़र गया आज,
कुछ नया नहीं किया
वैसा ही गुज़रा . . .
जैसा रोज़ गुज़रता है
वही सुबह, दुपहर
और ढलती शाम . . .
पर रात के अँधेरे ने
सोने नहीं दिया,
शायद, अभी . . .
स्वप्न देखता है
स्वप्न, कल का
कल की सुबह का
इस तम के पार . . .
देखता है उजाला
बहुत सारा उजाला
जो बताता है मुझको
तुमको, सबको . . .
अभी रात आयी है
पर, अभी बाक़ी है
सुबह का आना . . .
कल का दिन . . .
जो, शेष है अभी
आज गुज़रा है,
लेकिन कल . . .
पूरा का पूरा बचा है
कुछ करने के लिए
कुछ, बेहतर करने के लिए
आज नहीं हो सका
कोई बात नहीं
कल उठेंगे, चलेंगे . . .
और जो आज बाक़ी रहा
कल करेंगे, निश्चित है
कल पूरा करेंगे
हर स्वप्न को,
हर उम्मीद को . . .
जो आज देखा है
अभी देख रहे हैं
पूरा करेंगे, आज नहीं
एक दिन, सच में
हक़ीक़त बना देंगे
आज का स्वप्न . . .
अभी का स्वप्न . . .
रात कुछ देर की है
बस, कुछ देर की,
गुज़र जायेगी
हम कल तैयार रहेंगे
प्रकाश के साथ . . .
मन के उल्लास के साथ
तो फिर अभी . . .?
स्वप्न देखते है
केवल स्वप्न . . .
कल का स्वप्न, प्यारा स्वप्न
उजला, सुनहरा स्वप्न . . .
आज जो नहीं किया
अभी जो बाक़ी है
उसे, कुछ मिटाकर
थोड़ा भूलाकर . . .
याद रखते हैं
केवल और केवल
कल का दिन . . .
कल फिर सुबह होगी . . .
कल फिर दिन निकलेगा . . .!
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