कलयुगी आज़ादी
काव्य साहित्य | कविता गीता गुप्ता1 Aug 2021 (अंक: 186, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
कलयुगी आज़ादी में,
साँस लेने और छोड़ने का अंदाज़
बहुत ही अनूठा है . . .
क्योंकि यहाँ आज़ादी का बिगुल
चारों ओर अपनी अपनी
सहूलियत से बजता है . . .
हवस की तो बात ना ही करें तो अच्छा है . . .
क्योंकि यहाँ हर कोई सच्चा है . . .
फिर चाहे सुनसान सड़कों पर,
बालिग लड़की के मांस के लोथड़े
पड़ें हों या फिर
गुप्त रूप से नाबालिग का बलात्कार हो,
कलयुगी आज़ादी
हर अधिकार देती है . . .
धर्मनिरपेक्षता हमारी रग रग में है . . .
क्योंकि हम लोकतंत्रवादी हैं . . .
हमें अभिव्यक्ति की आज़ादी है . . .
सिगरेट के धुँए की तरह,
व्यवस्था में परिवर्तन करते हैं . . .
न्यूज़ चैनल पर नितदिन वाद-विवाद जारी है . . .
धर्म, बलात्कार, सियासत ये ही तीन स्तंभ हैं जो,
कलयुगी आज़ादी में,
चार चाँद लगाते हैं . . .
अधिक आहत होने पर,
न्यायालय के दरवाज़े –
सभी के लिए,
हर क्षण खुले हैं . . .
चप्पलों का घिसना इसका
बेहतरीन प्रमाण है . . .
सबका साथ सबका विकास
होना बहुत ज़रूरी है . . .
क्योंकि कलयुगी आज़ादी में
हर कार्य संभव है . . .
साक्षरता तो कूट कूट कर भरी है..
हर गली के चौराहे पर,
एक हैवानियत का दृश्य जारी है –
सैल्फ़ी, वीडियो में क़ैद
सारी घटनाओं के प्रमाण
हमारे पास हैं . . .
क्योंकि हम सभी मानवतावादी हैं।
कलयुगी आज़ादी में,
हरियाली ही हरियाली है . . .
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