ख़ास समुदाय
काव्य साहित्य | कविता सरोजनी नौटियाल3 May 2012
शहर में सात हिन्दुओं की हत्या
एक अल्पसंख्यक आग में झुलसा
समुदाय विशेष पर गोलियों का क़हर बरपा
पानी के झगड़े में एक दलित मर गया।
विकास क्रम में आदमी कहाँ से कहाँ पहुँच गया।
अब आदमी संज्ञा नहीं विशेषण बन गया।
हिन्दू अल्पसंख्यक समुदाय विशेष दलित
सब ओर मर रहे हैं
इनमें आदमी और आदमियत कहाँ हैं
इसी पर अफ़सोस कर रहे हैं
शायद अब आदमी ने मरना छोड़ दिया
मरने पर वह समुदाय विशेष का हो गया
घटना नहीं हमें बस पृष्ठभूमि नज़र आती है
मंच का हाहाकार नहीं नेपथ्य की गूँज सुनायी देती है।
विषाक्त सोच का रंग इतना गाढ़ा हो गया
कि पात्र पात्र नहीं पूरा कथानक हो गया।
कि वह वह है इसलिये नहीं मारा गया
मरने व मारने वालों के बीच कोई परिचय भी नहीं हुआ।
उसके साथ हुए हादसे का बस इतना सबब है
वह आदमी आम ज़रूर है
पर ख़ास समुदाय का है।
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