ख़ुद पर यक़ीन
काव्य साहित्य | कविता देवांश सिंह1 Jul 2021 (अंक: 184, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
तू ख़ुद पर कर यक़ीन
ना ख़ुद को हताश कर,
करेगा कोई मदद तेरी
न इसकी तू आस कर,
तू ख़ुद पर कर यक़ीन
न ख़ुद को हताश कर।
इस समय को तू न व्यर्थ कर
ख़ुद को तू न असमर्थ कर,
न रुक कभी किसी मोड़ पर
न सोच अतीत ख़ुद को कमजोर कर,
तू बढ़ अपनी मंज़िल पर
किसी हार का डर छोड़ कर।
ना डर इन राहों के पहाड़ से
बन मांझी तू इस पर प्रहार कर,
दे रास्ता यह, झुकआएँगे सर
तू बस मांझी जैसा प्रयास कर,
यह जो तेरे अपने मज़ाक बना रहे
यह मिलेंगे तुमसे झुकी नज़र कर।
जो हाथ में है किताब तेरे
और दिल में पढ़ाई का जुनून है,
तू दिखा दे इस दुनिया को
हर मंज़िल फ़तह कर,
तू ख़ुद पर कर यक़ीन
ना ख़ुद को हताश कर,
करेगा कोई मदद तेरी
ना इसकी तू आस कर,
तू ख़ुद पर कर यक़ीन
ना ख़ुद को हताश कर।
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