ख़्याल
अनूदित साहित्य | अनूदित कविता यकता1 Nov 2022 (अंक: 216, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
कुछ सुलझे, कुछ अनसुलझे से।
कुछ कहे, कुछ अनकहे से॥
कुछ ख़्याली, कुछ हक़ीक़त से।
कुछ पूरे, कुछ अधूरे से॥
यूँ ही बिखरे, जज़्बातों से।
मेरे ही लफ़्ज़ों तले
मेरे ख़्याल।
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