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किससे कहूँ मन की बात

सोनम कॉलेज से बाहर आकर जैसे ही स्कूटी स्टार्ट करने लगी तो उसकी नज़र पड़ोस की दिव्या पर पड़ी, धूप के कारण सिर ढके रिक्शे पर चढ़ रही थी। वह एक सौम्य सी मुस्कान देती हुई हाथ हिला कर रिक्शा में बैठ गई। दिव्या कॉलेज में उससे एक साल जूनियर थी। कहने को तो तो सोनम और दिव्या दोनों पड़ोसिन और हमउम्र थीं परन्तु उन दोनों के आपसी रिश्तों में वो प्रगाढ़ता देखने को नहीं मिलती थी जैसी कि हमउम्र लड़कियों में होती है। दोनों के बीच बस औपचारिकता मात्र ही थी। दिव्या ने तो कई बार सोनम की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया भी था परन्तु सोनम ने ही इस मैत्री की ओर उदासीनता का भाव बनाए रखा। यह देख कर दिव्या ने भी अपने क़दम पीछे हटा लिए जाने-अनजाने न जाने क्यों, सोनम के दिल में दिव्या के प्रति ईर्ष्या की चिंगारी सी धधकती रहती थी। 

दरअसल दिव्या के माता–पिता बहुत ही खुशमिज़ाज और मिलनसार थे। वो दोनों दिव्या के दिल के बेहद क़रीब थे। दिव्या के प्रति उनका व्यवहार मित्रवत था। वह भी अपने मन के हर छोटे–बड़े मसले अपने मम्मी–पापा से शेयर करती थी; ज़रूरत पड़ने पर उनसे राय भी लेती थी। दिव्या के माता–पिता भी बहुत प्यार से बातों-बातों में ही उसे अच्छे और बुरे की समझ और पहचान भी करना बता देते थे। सोनम को दिव्या की ख़ुशक़िस्मती पर ईर्ष्या सी होती थी। इधर उसका परिवार इसके बिल्कुल ही विपरीत था। वह बचपन से ही अपने माता–पिता की आपसी कलह और लड़ाई-झगड़ा ही देखती आई थी। पहले तो उसकी मम्मी सरिता, उच्च शिक्षित होते हुए भी गृहणी का कर्तव्य निभाना पसन्द करती थी। वह उच्च शिक्षित महिला होने के बावजूद अपने घर के प्रति पूरी तरह समर्पित रहना चाहती थी। विवाह के कुछ दिन बाद उसने अपने पति का स्वभाव और रवैया देखा तो वो दंग रह गई। एक पढ़े लिखे उच्च पदासीन इंसान से उसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। उसके पति घनश्यामजी बहुत ही कटु भाषी और अभद्र व्यक्ति थे। घर संसार में उनकी रुचि ही नहीं थी। वह जल विभाग में एक उच्च पद पर कार्यरत थे। ग़ुस्सा उनकी नाक पर धरा रहता था। हमेशा झुँझलाए हुए रहते थे मानो गृहस्थ जीवन की डोर उन्हें जबरन थमा दी गई हो। उन्हें अपनी पत्नी के प्रति सहानुभूति या प्रेम भाव न के बराबर था। उनके लिए पत्नी केवल एक दैहिक प्यास बुझाने का ज़रिया मात्र थी। इससे सरिता स्वयं को बहुत आहत महसूस करती थी। शादी के बाद जब सोनम का जन्म हुआ तब सरिता को कुछ आशा बँधी कि बच्ची को देख घनश्याम जी के स्वभाव में कुछ परिवर्तन आ ही जाएगा परन्तु इस बार भी सरिता को निराशा ही मिली। घनश्याम के दिल में अपनी कोमल सी बेटी को देख कर भी प्यार का कोई अंकुर नहीं फूटा। उन्होंने अपने आस पास बेरुख़ी और बेपरवाही का एक अभेद क़िला सा बना रखा था उस क़िले में प्रवेश करना आसान न था। बस अपने आत्मसम्मान को बलि चढ़ा कर ही उसमें प्रवेश किया जा सकता था। यह देख सरिता ने मजबूर होकर हथियार डाल दिए वो समझ गई कि घनश्याम पर सुधरने की उम्मीद रखना व्यर्थ हैं। सरिता एक कॉलेज में नौकरी करने लगी। उसके नौकरी करने की ख़बर से सोनम के मम्मी और पापा के बीच के तनाव ने उग्र रूप ले लिया। दोनों की आपस में तलवातें खिंच गई। सरिता भी अपनी ज़िद पर अड़ गईं। उसने घनश्याम से स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि अब तक उसने बहुत सहन कर लिया अब वह घनश्याम जी की मानसिक, शारीरिक और आर्थिक ग़ुलामी नहीं करेगी। 

सरिता ने नन्ही सोनम की देख-भाल के लिए एक आया को नियुक्त कर लिया। माता और पिता दोनों ही ने अपनी अपनी ईगो के चलते छोटी सी सोनम को नज़रअंदाज़ कर दिया। बेचारी सोनम उन दोनों के शीतयुद्ध का शिकार बन कर रह गई। मम्मी पापा का लाड़ दुलार क्या होता है, वह महसूस ही नहीं कर पाई। सरिता के कॉलेज जाने के बाद एक आया शीला, सोनम की देखभाल करती थी। इस तरह सोनम का बचपन शीला के रहमोकरम पर गुज़रने लगा। 

शीला एक बहुत ही चालाक क़िस्म की महिला थी। जब तक सरिता घर पर होती तब शीला, सोनम को बहुत प्यार से सँभालती और बहुत लाड़-प्यार दिखाती परन्तु सरिता की अनुपस्थिति में वह एकदम कठोर बन जाती थी। सोनम के सारे ज़रूरी काम पूरे करके वो आराम से मोबाइल से बातें करने में व्यस्त हो जाती। सोनम यदि कुछ माँगती या पूछती तो अनसुना कर देती। इस तरह पलते-पलते सोनम बड़ी होती चली गई। अब वह स्कूल जाने लगी। सरिता ने शीला की जगह सोनम की देख-भाल के लिए एक पढ़ी-लिखी लड़की रख ली जो सोनम को स्कूल बस में छोड़ने और लेने भी जाती उसकी। यूनिफॉर्म और स्कूल से जुड़े सारे कामों को देखती स्कूल से मिला होमवर्क करवाती देती थी। बेचारी सोनम को जो प्यार दुलार मम्मी और पापा से मिलना चाहिए था उससे वह वंचित ही रह गई। ऐसा नहीं था कि सरिता, सोनम से प्यार नहीं करती थी। उसे सोनम से बहुत प्यार और लगाव था परन्तु पति को सबक़ सिखाते-सिखाते वह स्वयं नौकरी के चक्रव्यूह में ऐसी फँसी कि निकल ही न पाई। अब सरिता एक दोराहे पर आ खड़ी हुई थी। उसके पास सोनम के लिए समय ही नहीं बचता था। कॉलेज के साथ घर की सारी ज़िम्मेदारी भी उनके कंधों पर थीं। सोनम बहुत सी बातें अपनी मम्मी से शेयर करने को तरसती पर छुट्टी के दिन थोड़ा सा समय भी मिलता तो वह काम की थकान से इतना थक जाती कि सोनम की बातें सुनते-सुनते या तो उसकी नींद लग जाती या अचानक कोई अधूरा काम याद आ जाता और उठ कर चली जाती इस तरह सोनम की बात अधूरी ही रह जाती थी। सरिता के पास ऐसे फ़ुर्सत के क्षण कम ही होते थे। सोनम अब इस सब की आदी हो चुकी थी। वह मन मसोस के रह जाती थी। मम्मी की व्यस्तता बढ़ती ही गई और माँ और बेटी में दूरियाँ बढ़ती गईं। सोनम अपने पापा के स्वभाव को भी बख़ूबी जानने लगी थी इसलिए उसने मम्मी और पापा दोनों पर ही कोई उम्मीद रखनी छोड़ दी। वह अन्तर्मुखी बन गई। ऐसे माहौल में वो बड़ी होती गई। अब वह कॉलेज में पहुँच चुकी थी। घरेलू काम के लिए एक काम वाली रख ली गई। कॉलेज से आकर सोनम खाना गर्म करके खा लेती थी। हाँ, एक बात जो हमेशा उसके मन को सालती रहती वो एक तो पापा की बदमिज़ाजी और दूसरी मम्मी का उसे समय न दे पाना उसके जीवन का सबसे बड़ा दर्द था। 

सोनम ने अपनी पढ़ाई लिखाई और उसके कॉलेजों में होने वाली अनेकों गतिविधियों के बारे में मम्मी और पापा को बताना ही छोड़ दिया क्योंकि पापा को इन सबमें कोई रुचि ही नहीं थी। मम्मी के पास समय नहीं था। मम्मी कभी रात में काम से निवृत हो कर सोनम से उसकी पढ़ाई-लिखाई या कुछ अन्य बातों के बारे में चर्चा करने लगती तो तो सोनम बहुत ही उत्साहित हो कर अपनी पढ़ाई-लिखाई, कॉलेज औऱ सहेलियों के क़िस्सों की पोटली खोलेने बैठ जाती। सोनम का मन रखने के लिए थकी हुई सरिता सुनने लगती और हाँ-हाँ करती रहती कभी-कभी तो सुनते-सुनते नींद में ही डूब जाती थी। अक़्सर ऐसा बहुत बार हो चुका था। सोनम भी अब बड़ी हो चुकी थी यह देख उसका मन खिन्न हो उठता। धीरे धीरे उसने मन को समझा लिया और अपनी दुनिया में सिमट के रह गई। उसने समझ लिया था कि उसके परिवार तीनों सदस्यों ने अपने अपने तरीक़े से रहने के तरीक़े चुन लिए हैं। उनका घर एक ऐसा पिंजरा था जिसमें तीन अलग तरह के पक्षी एक साथ क़ैद कर लिए गए थे। तीनों आपस में नाख़ुश थे पर मजबूर थे पिंजरा बंद था उड़ नहीं सकते थे। 

दिव्या के परिवार में व्याप्त सुख-शान्ति व आपसी प्यार सोनम के मन में फाँस बन कर चुभता उसके दिल में दिव्या के प्रति ईर्ष्या की भावना ने न चाहते हुए भी स्थान बना लिया और वह दिव्या की पड़ोसन और हमउम्र होते हुए भी उसके साथ मैत्री की डोर में न बँध सकी। 

घर पहुँचते ही वह बैग से चाबियाँ निकाल ही रही थी कि दिव्या क रिक्शा भी आ पहुँचा। रोज़ की तरह दिव्या की मम्मी अपने बरामदे में खड़ी दिव्या की राह देख रही थीं। यह उनकी रोज़ की आदत में शामिल था। बेटी को देख उसकी मम्मी का चेहरा खिल गया। दिव्या ने गेट से ही चिल्ला कर कहा, मम्मी खाना लगा दो बहुत भूख लगी हुई है। यह देख सुन कर सोनम खिन्न सी हो गई और ताला खोल कर अन्दर अंदर चली गई। रोज़ की तरह घर में सन्नाटा पसरा हुआ था। कपड़े बदल कर वह रसोईकर में खाना निकालने लगी। वही रोज़ की तरह खाने में, दाल जो ठंडी हो कर जम सी गई थी सब्ज़ी भी मनपसंद न थी खाना गर्म करने की इच्छा न हुई थोड़ा सा खाकर उठ खड़ी हुई। 

रोज़ का यही क़िस्सा था माँ थकी हुई आकर जब उसका रसोई में उसका अधखाया खाना देखेगी, लगती दबे स्वर में कुछ बुदबुदाने लगती थी ऐसा नहीं था कि सोनम को खाना बनाना या गर्म करके खाना नहीं आता था। जाने-अनजाने वो तो माँ से खाना बनाना तो सीख ही चुकी थी पर उसके मन में एक गहरी खिन्नता और उदासीनता स्थायी रूप ने घर बना चुकी थी। उसे न खाना बनाने और न खाना खाने में कोई रुचि रह गई थी। उसकी माँ सरिता भी अब घर और नौकरी के जाल में कुछ ऐसी फँसी की सोनम से ही दूर होती चली गई। पिता तो पहले ही सोनम के लिए बेगानों जैसे थे। सरिता घर और कॉलेज की ज़िम्मेदारी के बोझ तले इतना दब गई कि सोनम की ओर ध्यान नहीं दे पाती। 

सोनम को याद आने लगा कि जब वह कक्षा में प्रथम आती या उसे कोई स्कूल की ओर से कोई इनाम मिलता तो वह कूदती-फाँदती घर आती। वो बेक़रारी से शाम को मम्मी और पापा के आने की राह देखती पर हमेशा उदासी ही हाथ लगती मम्मी थकी हुई होती फिर भी पर हाथ फेर कर घर के कामों में लग जाती। पापा के पास जाने से वो बहुत डरती थी फिर भी हिम्मत कर, उत्साहित होकर अपना रिपोर्ट कार्ड दिखाने पहुँच ही जाती परन्तु उसके पापा अख़बार में ही नज़र गड़ाए ठीक है, ठीक है कह कर भगा देते थे। धीरे-धीरे उसने अपने मन को समझा लिया। अब वह अपना रिज़ल्ट, स्कूल कॉलेज में मिली सफलताओं के बारे में घर में चर्चा ही नहीं करती थी न ही कोई उसे इस विषय में पूछता। 

मम्मी भी अब बढ़ती उम्र और काम की अधिकता के कारण बहुत थकावट महसूस करने लगी थी। कॉलेज से आकर जैसे-तैसे रात का खाना बनाती और सुविधा के लिए अगले दिन की तैयारी में जुट जाती थी। मम्मी की एक अच्छी बात यह थी कि वह सोनम को पॉकेट मनी देने में कभी कंजूसी नहीं करती थी। शायद वो बेटी को समय न दे पाने का मुआवज़ा इस रूप से देना चाहती थी। पापा से तो किसी चीज़ के लिए पैसे निकलवाना ऊँट के कुछ से गन्ना खींचने जैसा था। मजबूरन कभी कुछ माँगने पर दस प्रश्न पूछते, फिर फ़ुज़ूलख़र्ची का ताना देते और 100 रुपये माँगो तो बड़ी कठिनाई से 10 रुपए देकर भगा देते। सोनम ने तो उनसे पैसे माँगना ही छोड़ दिया था। सोनम के पापा की एक ख़ासियत यह थी कि अपने बॉस या दोस्तों के लिए पार्टियाँ देने में दिल खोल कर ख़र्च करते थे परन्तु पत्नी या बेटी पर ख़र्च पर करने पर उनके माथे पर बल पड़ जाते थे। 

अचानक सोनम का ध्यान कॉल बेल की आवाज़ से भंग हुआ। वह अपने वर्तमान में लौट आई। मम्मी कॉलेज से लौट आई थी। सोनम को याद आया कि उसे तो कल दयानन्द कॉलेज जाना है। वहाँ अन्य सहपाठियों के साथ उसे भी कुछ प्रतियोगिताऒं में हिस्सा लेने के लिए चुना गया था। उसने औपचारितावश मम्मी को इसकी सूचना देनी थी क्योंकि वहाँ अधिक समय लग सकता था। इसके लिए उसे कुछ तैयारी भी करनी थी। रात को डिनर पर उसने धीरे से मम्मी को इस बारे में सूचित कर दिया। पापा उनकी बातों से उदासीन, खाना खाने में व्यस्त थे। वह दोनों अभी खाना खा ही रहीं थीं कि कि घनश्याम जी बहुत ही अशिष्टता से कुर्सी को धकेलते हुए उठ खड़े हुए और हाथ धो कर टीवी देखने में व्यस्त हो गए। 

अगले दिन सुबह सोनम अपने ग्रुप के साथ दयानन्द कॉलेज जा पहुँची। वहाँ छात्र छात्राओं की भारी भीड़ उमड़ी हुई थी। सोनम अपने कॉलेज के सांस्कृतिक कार्यक्रमों की लीडर थी। अपने कॉलेज की छात्राओं के बैठने के स्थान की पूछताछ करने के लिए वह आगे बढ़ी। उन्हें किस तंबू में बैठना है? इस की पूछताछ कर रही थी परन्तु कहीं से भी ठीक जानकारी नहीं मिल पा रही थी। अचानक एक ख़ूबसूरत सा नवयुवक शायद वह उसी कॉलेज का था सोनम की परेशानी को देख कर आगे बढ़ कर सामने आया। उस युवक का ग़ौर वर्ण लम्बा क़द, प्रशस्त भाल और शरारती आँखें थीं। उसने बड़े, क़रीने से बाल सँवारे हुए थे। सोनम के कुर्ते पर लगे बैज को देखते हुए बोला, आप तो महादेवी कॉलेज से हैं न? सोनम के हामी भरने पर वह बोला, “आइए मैं आप सबको आपके बैठने का स्थान बताता हूँ।” उस युवक ने उन्हें उनके लिए आरक्षित उनके तम्बू में ले जाकर छोड़ आया। सही स्थान मिल जाने के पर सोनम ने उस युवक को धन्यवाद दिया उस पर वह बोला< “आप तो हमारे कॉलेज के मेहमान हैं। आप लोगों की परेशानी दूर करना हमारा कर्तव्य है। मैं 4 नम्बर के तम्बू में ही हूँ कोई परेशानी हो तो मुझे बता दीजिए।” 

सोनम उसकी बातों से बहुत प्रभावित हो गई उसने अपने ग्रुप में उसकी चर्चा की तो सब लड़कियाँ हँसने लगी और बोली कि सोनम तू बहुत ही भोली है। ज़रा सोचो तो, अगर वो हमारे कॉलेज में ऐसे आते तो हम भी उनकी ऐसे ही मदद करते या नहीं? सोनम चुप रह गई। तीन दिन गुज़र गए। युवा सांस्कृतिक महोत्सव ख़त्म होने को था। पुरस्कार वितरण के बाद सोनम भी अपनी सहपाठियों के साथ लौटने को तैयार खड़ी थी। उसके दिल और दिमाग़ रोहित के बारे में ही सोच रहा था। उसे रोहित की हर बात भा गई थी। उसका मुस्कुराना, चाल-ढाल, बातें करना सभी कुछ प्रभावशाली था। शायद जीवन में पहली बार उसे किसी युवक के पास आने, बातचीत करने का मौक़ा मिला था। वरना उसकी ज़िन्दगी तो एक बंद कमरे की तरह थी जिसमें कोई आता जाता नहीं था। उसमें कोई दरवाज़े या खिड़की न थी; कोई आवाज़ भी नहीं देता बस उदासी और अकेलेपन का अँधेरा ही छाया रहता। उम्र का तक़ाज़ा भी था इसलिए सोनम के मन में सुहानी सी भावनाएँ हिलोरें लेने लगी थीं। पहली बार किसी ने इतना अपनापन दिखाया था। खाने के समय जब सब छात्र छात्राएँ, उतावले हो कर खाना लेने के एक दूसरे को धक्का दे कर पहले खाना लेने की कोशिश करने लगे थे मानों खाना ही ख़त्म हो जाएगा। सोनम दूर खड़ी होकर यह तमाशा देख रही थी। उसकी सहेलियाँ भी धक्का लगा कर भीड़ में घुस कर खाना ले आईं पर सोनम सभ्यतावश किनारे ही खड़ी रही। अचानक, न जाने कहाँ से रोहित खाने की प्लेट ले कर सामने आ खड़ा हुआ। वो संकोच में डूब गई। रोहित हँस कर बोला, “अरे, हमारे कॉलेज से भूखी जा कर हमें बदनाम करवाओगी?” सोनम ने संकोच से प्लेट तो पकड़ ली पर कुछ कह नहीं पाई, उसका चेहरा लाज से गुलाबी हो गया था। खाना खा कर वह अपनी सारी सहपाठियों से विदा ले अपने घर रवाना हो गई। 

उसने जैसे ही घर के गेट पर स्कूटी खड़ी करी तो उसे पीछे से कार का हॉर्न सुनाई पड़ा। जब उसने पलट कर देखा तो उसे पीछे वाली कार में रोहित बैठा दिखाई दिया वह एक मोहक मुस्कान से उसकी ओर देखते हुए बोला, “अरे आप यहाँ रहती हैं?” यह कहते हुए वह कार से नीचे उतर आया और सोनम के पास आकर खड़ा हो गया। सोनम का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। उसने सिर हिला कर हामी भरी। रोहित बोला, “मैं तो महावीर नगर में रहता हूँ। मेरे पापा का एक रेडीमेंड गारमेंन्ट का शो रूम है। बस, मैं तो कॉलेज के बाद पापा के साथ ही बिज़नेस में उनका सहयोग देने की सोच रहा हूँ, पापा अकेले इतना बड़ा बिजसेस कैसे सम्भालेंगे?” रोहित अचानक बोला, “अरे आप भी तो अपने बारे में कुछ बताएँ?”

सोनम शर्माते हुए बोली, “मैं अपने मम्मी-पापा की इकलौती बेटी हूँ। मम्मी पापा दोनों ही नौकरी करते हैं और तो मेरे पास कुछ ख़ास बताने योग्य है नहीं।” 

यह सुनकर रोहित हँसते-हँसते बोला, “अरे, वाह मैं भी इकलौता ही हूँ। हम दोनों की ख़ूब जमेगी।” 

यह सुनकर सोनम शर्मा कर घर के अंदर चली गई। इस नए-नए अनुभव के बाद सोनम के मन में अनोखी-सी बेचैनी करवटें लेने लगीं। उसके मन में एक अनूठे से अहसास की तरंगें उठने लगीं। हमेशा की तरह घर में कोई न था। उसने चाय बनाई और अपने कमरे में जा बैठी वह मन ही मन सोचने लगी कि पता नहीं आज के बाद रोहित से फिर उसकी मुलाक़ात होगी या नहीं? काश रोहित उसे एक बार फिर कहीं मिल जाए। इस ख़्याल से ही वह बहुत रोमांचित हो उठी। किसी ने उससे कभी भी इतने प्यार और अपनेपन से बात नहीं की थी। वह स्वयं ही पुरुषों से दूर भागती थी। मम्मी-पापा के आपसी संबंधों ने उसके मन की कोमल भावनाओं को झुलसा के रख दिया था। अब तो किसी लड़के से बात करने की उसकी इच्छा ही नहीं होती। उसके घर में हर समय तू-तू, मैं-मैं ही होती रहती थी। वह आज की सारी बातें मम्मी से दिल खोल कर करना चाहती थी परन्तु मम्मी तो घर और कॉलेज के कामों में इतनी व्यस्त थी कि कुछ सुनने का उनके पास समय ही कहाँ था? उसने तो मम्मी हो हमेशा उदास और थका हुआ ही देखा था। बहुत ज़रूरी बातें भी वह चलते-फिरते या कोई काम करते-करते ही कहती और सुनती थीं। ऐसे में सोनम किससे कहे अपने दिल की बात? सब सहेलियाँ एक दूसरे के घर आती–जाती थीं परन्तु सोनम अपने पापा के क्रोधी और रूखे स्वभाव के कारण किसी को अपने घर भी बुलाने का साहस नहीं करती थी। वह डरती थी कि कहीं पापा उसे या मम्मी को उसकी सहेलियों के सामने ही अपमानित न कर दें। 

उसकी सहपाठिनें उसकी ख़ामोशी को देख उसे घमंडी समझ कर उससे दूरी बनाने लगी थीं। सोनम मन ही मन घुटती रहती कि वह उनकी ग़लतफ़हमी कैसे दूर करे? बस, उनमें से एक गीता ही ऐसी थी जो उसके दिल के क़रीब थी। वह उसके पापा के स्वभाव से भी परिचित थी। एक बार उसके सामने ही सोनम के पापा को उसने सोनम की मम्मी को अपमानित करते देखा था। गीता का घर सोनम के घर से बहुत दूर पड़ता था इस लिए रोज़-रोज़ उसके घर जाना भी सम्भव नहीं था। आज सोनम का मन बेचैन हो रहा था। वह पिछले दिनों हुई अनेक प्रतियोगिताओं में मिलने वाली सफलताओं की चर्चा किसके साथ करे? रोहित के बारे में अपनी भावनाएँ किससे साझा करे समझ नहीं पाती रही थी कि किससे कहे अपने मन की बात; सोनम यथावत कॉलेज जाने लगी। 

एक दिन, अचानक कॉलेज के गेट के बाहर निकलते ही उसे रोहित दिखाई दे गया। अपनी कार के पास खड़ा था। उसे देखते ही वह मुस्कुराते हुए उसकी ओर आ गया। सोनम का दिल ज़ोरों से धड़क उठा। उसने बहुत ही कठिनाई से अपनी भावनाओं को छिपाते हुए रोहित से धीरे से पूछा, “आप यहाँ कैसे?”

रोहित शरारत भरी निगाहों से उसकी ओर देखते हुए बोला, “बस ऐसे ही, आपको देखने की बहुत इच्छा हो रही थी इस लिए इधर चला आया। चलिए, आज हम दोनों कॉफ़ी पीने चलते हैं।”

सोनम असमंजस में थी कि क्या जवाब दे, इतने में ही रोहित बोल उठा, “इतनी छोटी सी बात के लिए इतना भी क्या सोचना? चलिए न!” यह कहते हुए रोहित ने लपक कर सोनम का हाथ पकड़ लिया और बोला, “आधे घण्टे में लौट भी आएँगे अब मान भी जाओ।”

रोहित के प्यार भरी ज़िद को सोनम को मानना ही पड़ा। रोहित के स्पर्श करने से सोनम के शरीर में सैकड़ों बिजलियाँ अचानक कौंध गईं थी। वह अवाक्‌ सी मूर्ति बनी कार में बैठ गई। कॉफ़ी हट में जाकर सोनम का संकोच धीरे-धीरे कम होने लगा था। उधर रोहित बड़े उत्साह से अपने परिवार के बारे में बता रहा था। वह मन्त्र मुग्ध सी उसके चेहरे की ओर ही देखती जा रही थी। रोहित बोला, “मैं ही इतनी देर से बोलता जा रहा हूँ आप भी कुछ बात करिए।” सोनम मन ही मन सोचने लगी कि रोहित, ‘मैं तुम्हें अपने बारे में क्या बताऊँ? मैं तो अजनबियों की एक बस्ती में रहती हूँ, जहाँ सब एक दूसरे की भावनाओं से अनजान हैं, एक दूसरे से बेगाने जीवन बिता रहें हैं।’ सोनम के मन में एक गहरी टीस उठी। वह उठ खड़ी हुई और बोली, “रोहित अब मुझे कॉलेज लौटना है।” अब रोहित को भी मजबूर हो कर उठना पड़ा। कॉलेज के सामने सोनम को उतार कर वह चला गया। जाते-जाते उसने एक मोहक मुस्कान सोनम पर डाली और तेज़ी से कार आगे बढ़ा ली। 

घर में प्रवेश करते ही वही सन्नाटा और उदासी उसे घेरने लगी। उसे बरबस रोहित के साथ गुज़ारे वो पल याद आ गए। उसे ऐसा महसूस हुआ कि उसका शरीर उसके साथ था परन्तु उसकी जान रोहित के साथ ही चली गई। कार से उतरने के वक़्त रोहित की प्यार में डूबी एक नज़र ने उस पर जादू सा कर दिया था। अपना वुजूद भूल कर रोहित के रंग में रँगी जा रही थी। यह कैसा अहसास है अचानक उसकी नज़र कमरे में लगे दर्पण पर पड़ी। रूप-रंग का भरपूर ख़ज़ाना होते हुए भी उसका चेहरा कितना फीका लग रहा था। वह हमेशा अपने रूप-रंग की ओर उदासीन ही रही। वह अपने बारे में सोच ही रही थी कि अचानक उसे किचन से मम्मी की आवाज़ सुनाई पड़ी। “यह क्या सोनम? आज भी तुम्हारा खाना ऐसे ही पड़ा है। तुमन दूध भी फ़्रिज में नहीं रखा वह भी फट गया। तुम बहुत लापरवाह हो गई हो। मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा है; सोचा थोड़ी चाय पी कर आराम करूँगी पर तुम्हें कोई परवाह ही नहीं है। अभी मुझे खाना भी अकेले ही बनाना है।” मम्मी को ग़ुस्से में देख सोनम ने दिल में उठते प्यारे से जज़्बातों को मन में ही छिपा लिया वह बुझे मन से किचन में चली गई और मम्मी के लिए मिल्क पाउडर से चाय बनाने लगी। चाय बना वह अपने कमरे में आ गई वह समझ गई कि उसके मम्मी-पापा अपनी-अपनी दुनिया, अपने-अपने मसलों में ही व्यस्त हैं। उसके दिल की बातें समझने और सुनने के लिए उनके पास न समय है न उन्हें दिलचस्पी है। 

इस दिन के बाद, सोनम के जीवन में एक नया बदलाव आ गया। अब उसने स्वयं अपने बारे में सोचना शुरू कर दिया वह हर छोटी बड़ी बात में अपने लिए ख़ुशियाँ तलाशती। उसने सोच लिया कि वह अब किसी को अपनी ख़ुशियों के आड़े आने नहीं देगी। वह कोई रिमोट से चलने वाला खिलौना नहीं है। बिना किसी की परवाह किए अपनी इच्छा से अपनी ज़िन्दगी जियेगी। 

सोनम के जीवन में एक प्यारा सा अनोखा सा बदलाव आने लगा था। वो कॉलेज में सखियों के साथ हँसने बोलने लगी। यही नहीं गीता के साथ वह अक़्सर शॉपिंग करने, ब्यूटी पार्लर जाने का भी कार्यक्रम बनाती। सोनम को कभी भी रुपए पैसे की तंगी तो महसूस नहीं हुई। उसकी मम्मी खुले दिल से उसे पॉकेट मनी देती थीं। इस मामले में वो कभी कंजूसी नहीं करती थी। शायद इसके पीछे भी उनकी यह सोच रही होगी कि वह बेटी को समय तो दे नहीं पाती इस लिए अधिक पॉकेट मनी देकर वह अपने मन में उठते अपराध बोध से उबरना चाहती थीं। सोनम अब अक़्सर गीता के साथ बड़े उत्साह से शॉपिंग करने जाने लगी वहाँ वह नए फ़ैशन के बहुत से कपड़े, सेंडल और पर्स आदि ख़रीद लेती। दोनों मिल कर कभी चाट और कभी आइसक्रीम खाती थीं। एक दिन दोनों ने ब्यूटी पार्लर जाकर फ़ेशियल करवाया। सोनम सुंदर तो थी ही परन्तु अब उसका चेहरा दमकने लगा था। वह स्वयं को आईने में देख कर चकित सी रह गई। 

सोनम का जन्मदिन 3 मार्च को होता था। अक़्सर इस दिन वह अपनी सहेलियों के साथ कॉलेज की केन्टीन में जाकर उन्हें कुछ खिला-पिला देती थी। इस बार भी उसने यही किया। उसके मन में टीस सी उठी। वह सोचने लगी कि उसके पापा को शायद उसका जन्मदिन याद भी नहीं होगा हाँ मम्मी ही उसके जन्मदिन पर अपने कॉलेज की केंटीन से गुलाब जामुन और समोसे ले आती है। दोनों माँ बेटी मिल कर खा लेती हैं। सोनम इन्हीं विचारों ही डूबी कॉलेज के गेट से बाहर निकली तो चकित रह गई। उसके सामने एक बड़ा सा उपहार लिए रोहित खड़ा था। उसका दिल ज़ोर से धड़क उठा और चेहरा अनोखी ख़ुशी से खिल गया। अचानक उसे याद आया कि उस दिन कॉफ़ी हट में रोहित ने बहाने से उससे उसकी जन्मदिन की तारीख़ भी पूछी थी। उसे देख कर रोहित मुस्कुरा के आगे बढ़ा और उसे जन्मदिन की मुबारक देते हुए तोहफ़ा उसके हाथ में थमा दिया। सोनम संकोच करते हुए इंकार करने लगी पर रोहित ने एक न सुनी। रोहित ने लपक कर कार का दरवाज़ा खोल कर उसे कार में बैठने का इशारा किया और बोला, “घबराइए नहीं आज की पार्टी आप की तरफ़ से ही होगी।” सोनम हैरान रह गई। वह किसी मन्त्र पूत सम्मोहन की डोरी से बँधी कार में जा बैठी। रोहित ने कार को एक होटल के सामने रोक दिया। वहाँ उसने पहले से ही एक केबिन बुक करवाया हुआ था। रोहित ने सब चीज़ें सोनम की पसंद की मँगवाई। बहुत ही ख़ुशनुमा माहौल में दोनों ने समय बिताया सोनम को पहली बार अपने जन्मदिन पर इतनी ख़ुशी का अनुभव हो रहा था। पार्टी के बाद रोहित ने उसे कॉलेज के बाहर उतार दिया सोनम वहाँ से अपनी स्कूटी पर घर चली गई। सोनम, रोहित के ख्यालों में डूबी थी। रोहित ने आज उसके जन्मदिन पर इतनी ख़ुशी दे कर उसे फलक पर बिठा दिया था। मम्मी और पापा दोनों ही घर लौट चुके थे। मम्मी किचन में खाना बनाने की तैयारी कर रहीं थीं। जब सरिता ने सोनम को आए देखा तो वह हमेशा की तरह अपने कॉलेज की केन्टीन से लाए हुए समोसे और गुलाब जामुन लेकर आ गई। उसने सोनम को पुकारा, मम्मी की आवाज़ सुन सोनम कमरे से बाहर आई तो मम्मी उसे समोसे और गुलाब जामुन खिलाने के लिए आगे बढ़ी और बोली, “जन्मदिन मुबारक हो।” समोसे की ख़ुश्बू पाकर अख़बार में डूबे घनश्याम जी का ध्यान भंग हो गया। जब उनकी नज़र प्लेट पर पड़ी तो वह ताना कसते हुए बोले, “आज यह किस ख़ुशी में पार्टी हो रही है?” बिना जवाब की प्रतीक्षा किए उन्होंने बड़ी अभद्रता से सरिता के हाथ से प्लेट ले ली और गपा-गप खाना शुरू कर दिया। उन्हें तो सोनम के जन्मदिन की याद तक नहीं थी। सोनम और उसकी मम्मी एक दूसरे की ओर देखती ही रह गईं। जब उन्होंने भर पेट मिठाई ख़ाली तब जूठी प्लेट वहीं छोड़ कर घर से बाहर निकल गए। रुआँसी सी सोनम, पिता के इस अभद्र व्यवहार को देख बिना खाना खाए ही सो गई। सरिता का मन भी खिन्न हो गया। किचन समेट वह भी लेट गई। थकान से सरिता को गहरी नींद आ गई। 

इस घटना के बाद सोनम के दिल में आक्रोश का ज्वार–भाटा उठ गया था। उसका मन बार-बार रोहित के अनकहे प्यार की ओर आकर्षित होने लगा। वह रोहित को लेकर मन ही मन सतरंगी सपने बुनने लगी थी। उसका मन भावी जीवन की कल्पनाओं में डूब जाता। वह सोचती कॉलेज पूरा करने के बाद वह रोहित के साथ नए जीवन की नींव रखेगी। उस दोनों की एक प्यारी सी दुनिया होगी। रोहित का परिवार उसका ही अपना परिवार होगा। वह रोहित के साथ नई दुनिया बसाएगी। वह जानती थी कि उसके पापा साथ दे या न दें परन्तु मम्मी को तो वह किसी तरह मना ही लेगी। पापा तो यह सुन कर घर में न जाने कौन-सा तूफ़ान खड़ा कर देंगें? अब उसने मन ही मन रोहित का प्यार स्वीकार कर लिया रोहित के लिए वह अपने परिवार के विरुद्ध भी जाने के लिए सोच बैठी थी। वह बचपन से आज तक उनके लाड़ प्यार को कितना तरसी थी। उसके मम्मी पापा दोनों ने ही अपना अपना रास्ता चुन कर जीने की राह खोज ली। उन्होंने कभी उसके बारे में नहीं सोचा। 

सोनम की ख़ास सखी गीता ने जब सोनम में एक प्यारा-सा बदलाव देखा तो उसे बहुत ख़ुशी हुई। उसे इसका कारण तो पता नहीं था परन्तु उत्सुकता बहुत थी। एक दिन अवसर पाकर वह सोनम से इसका कारण पूछ ही बैठी। सोनम का मन तो अपनी और रोहित की बढ़ती नज़दीकियों के क़िस्से सुनाने के लिए पहले से ही मचल रहा था। वह रोहित के ख़्यालों में आकंठ डूबी हुई थी। उसने कुछ शर्माते कुछ मुस्कुराते हुए रोहित के साथ हुई सारी बातें और मुलाक़ातें गीता को सुना डालीं। गीता और सोनम बचपन से एक दूसरे के बारे में जानती थीं। गीता तो सोनम के घर के माहौल से भी भली-भाँति परिचित भी थी। वह सही अर्थों में एक समझदार और दूरदर्शी लड़की थी। गीता को यह मालूम था कि सोनम बहुत भोली है और दुनियादारी से बेख़बर है। दुनिया की चालाकियों से उसका पाला कभी पड़ा नहीं था। यद्यपि वह सोनम के बदले हुए जीवन और ख़ुशियों से बहुत प्रसन्न थी परन्तु वह सोनम को छल-कपट से भरी दुनिया से सावधान भी करवाना चाहती थी। सोनम जब अपने और रोहित के क़िस्से बता रही थी उस समय उसके चेहरे पर जो ख़ुशी की अनोखी चमक दिखी उसे देख गीता कुछ अधिक कहने का साहस न कर पाई परन्तु चलते-चलते उसने सोनम से इतना तो कह ही दिया कि सोनम तुम बहुत भोली है, तुमने रोहित को लेकर इतने सपने बुन डाले हैं परन्तु उसके दिल के और उसके बारे में क्या है? कभी सोचा? तुम्हें इतनी जल्दी किसी पर तुम्हेंं विश्ववास कर लेना क्या अनुचित नहीं लग रहा? 

गीता की इस बात को, सोनम ने बीच में ही काटते हुए कहा, “गीता तुम नहीं समझोगी, तुमने रोहित जैसा नम्र और समझदार लड़का पहले कभी नहीं देखा होगा। उसने अभी तक कोई बात ऐसी नहीं की है जिससे किसी लड़की का अपमान हो और आत्मस्वाभिमान आहत हो।” जब गीता ने देखा कि उसकी दी हुई नसीहतें सोनम के दिल और दिमाग़ से ऐसे फिसल रहीं हैं जैसे किसी चिकने पत्ते के ऊपर से पानी की बूँदें फिसलती हैं तब वह मौन हो गई। गीता भी युवा थी। उसे महसूस हुआ कि कहीं सोनम उसकी बातों को अन्यथा ही न ले ले इस लिए उसने इस चर्चा को विराम दे दिया। वह दोनों रोज़ कॉलेज में मिलती थीं पर गीता कभी भी रोहित और उसके सम्बधों का ज़िक्र नहीं करती थी। 

सोनम की रोहित से मेल मुलाक़ातें बढ़ती जा रहीं थीं। उसका भय और संकोच भी धीरे-धीरे ख़त्म हो चुका था। उसके मम्मी पापा तो शाम से पहले घर आते नहीं थे। अब वह अक़्सर कॉलेज के बाद रोहित के कभी किसी पार्क में या किसी होटल में चली जाती। रोहित उसे भविष्य के सतरंगी सपने दिखाता था। रोहित कभी अपने पिता के कारोबार के बारे में बताता तो कभी अपने बँगले के बारे में जानकारी देता। सोनम मन्त्र मुग्ध सी रोहित की बातें सुनती रहती। मन ही मन में वह पुलकित हो उठती थी अपने होने वाले ससुराल की कल्पना में खो जाती। मन ही मन उसे रोहित के मम्मी-पापा से भी एक जुड़ाव-सा हो गया था। वह दीवा स्वप्न देखती रहती कि ससुराल में वह कैसे सबका दिल जीत लेगी। रोहित के मम्मी-पापा की ख़ूब सेवा करेगी। ऐसे ही दिन बीत रहे थे। एक दिन रोहित ने सोनम को कहा कि कल तुम कॉलेज नहीं जाना मैं तुम्हेंं अपने फार्म हाउस के ले चलूँगा। फ़ार्म हाउस शहर से बहुत दूर था इस लिए सोनम ने इंकार कर दिया। उसने सोचा देर होने पर घर समय पर न पहुँची तो क्या होगा? वैसे भी उसे डर लग रहा था कहीं कोई जान-पहचान वाले ने देख लिया तो क्या जवाब देगी? उसके इंकार पर रोहित बहुत नाराज़ हो उठा और सोनम को भला बुरा कहने लगा कि तुम्हेंं मेरे ऊपर, मेरे प्यार पर विश्वास ही नहीं हैं। विश्वास नहीं है तो मेल-जोल कैसा? अब हम आज के बाद एक दूसरे से नहीं मिलेंगे। वह पैर पटकते हुए ग़ुस्से में लाल-पीला होकर जाने लगा। यह देख कर सोनम का दिल बेचैन हो उठा। उसने लोक लाज त्याग कर बीच सड़क में रोहित का हाथ पकड़ लिया और उसे रोकने लगी। अब उसने तुरंत अगले दिन ही रोहित के साथ फार्म हाउस जाने की हामी भर दी। 

अगले दिन सोनम अपने मम्मी-पापा के जाने के बाद ही रोहित के साथ जाने के लिए तैयार हो गई। वह रोहित के बताए स्थान पर पहुँच गई। रोहित भी अच्छी तरह तैयार हो कार लेकर आ गया। काफ़ी लंबी ड्राइव के बाद दोनों फार्म हाउस जा पहुँचे। वहाँ दो माली, एक दो नौकरों के अलावा और कोई दिखाई नहीं दे रहा था। सोनम मन ही मन घबरा रही थी। पहले दोनों बाहर बग़ीचे में बिछी कुर्सियों पर बैठ गए। एक नौकर कोल्ड ड्रिंक और स्नैक्स रख गया। सोनम पहली बार किसी पुरुष के साथ इतनी दूर आई थी। उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। रोहित ने कोल्ड ड्रिंक्स का गिलास सोनम को पकड़ा कर बोला लो, यह लिम्का पी लो थकावट दूर हो जाएगी। उसने अपने लिए बीयर मँगवाई थी। यह देख सोनम को कुछ हैरानगी सी हुई। सोनम ने कोल्ड ड्रिंक पी लिया रोहित ने सोनम को फ़ार्म हॉउस में घूमने के लिए चलने के लिए कहा। सोनम जैसे ही चलने के लिए खड़ी हुई उसका सिर ज़ोर से चकराने लगा। वह गिरने लगी पास ही खड़े रोहित ने सहारा देते हुए उसे थाम लिया और बोला तुमने शायद सवेरे से कुछ खाया नहीं है कुछ खा कर आराम कर लो बाद में घूम लेंगे। वास्तव में रोहित के साथ जाने की जल्दी में सोनम एक कप चाय भी न पी पाई थी। 

रोहित ने, पास खड़े एक नौकर को वहाँ बने कॉटेज का कमरा खोलने का आदेश दिया। रोहित बड़े प्यार से सोनम को पकड़ कर ले गया। कमरे में पड़े बेड पर सोनम लेट गई। रोहित ने कहा कि सोनम मैं बाहर ही बैठा हूँ, घबराना मत कुछ देर आराम कर लो, ठीक हो जाओगी तो पूरा फ़ार्म हॉउस दिखाऊँगा। सोनम का सिर घूम रहा था। धीरे-धीरे वह अचेत होने लगी उसके बाद पूरी तरह बेहोश हो गई। 

न जाने कितना समय बीत चुका था। अब सोनम के कानों में कुछ अस्फुट ध्वनियाँ सी सुनाई पड़ने लगीं। कुछ लोगों के फुसफुसाहट भी कानों में पड़ी। ऐसे लगा कोई उसके शरीर को स्पर्श कर रहा है उसने घबरा के आँखें खोली तो पाया रोहित उसके नग्न शरीर पर एक नौकर की सहायता से कपड़े पहनाने की कोशिश कर रहा है। उसके पैरों तले की ज़मीन खिसक गई। क्रोध और क्षोभ से वह चिल्लाने लगी। रोहित ने नौकर को बाहर जाने का इशारा किया और बोला क्या बात है क्यों चिल्ला रही हो? रोहित के बदले हुए सुर सुन सोनम चकित रह गई। वह बोला, “कोई नई बात तो नहीं है, हम दोनों युवा हैं। कभी-कभी ऐसी ग़लती हो जाती है।” 

सोनम ने काँपते हाथों से पूरे कपड़े पहने और बिस्तर से उतर रोहित के सामने जा खड़ी हुई। उसने रोहित का कॉलर पकड़ के उसे धक्का देते हुए कहा, “बेशर्म, धोखेबाज़ लड़के तुमने मुझे बहुत बड़ा दग़ा दिया है।” 

यह कह वह बदहवास सी हो कर दीवारों से अपना सिर फोड़ने लगी। बात बिगड़ते देख, रोहित ने नया पैंतरा बदला और बोला, “सोनम, मैं तो मज़ाक कर रहा था और तुम उसे सच समझ बैठी। अरे, तुम तो मेरी होने वाली पत्नी हो। घबराती क्यों हो, मैं तुम्हेंं बहुत जल्दी ही बैंड-बाजे के साथ दुलहन बना कर ले जाऊँगा।” ऐसी बातें कर-कर के रोहित सोनम के क्रोध पर पानी डालने की कोशिश करने लगा। भोली-भाली सोनम शादी की बात सुन कर बोली, “रोहित तुम मेरी क़सम खाओ आज ही अपने मम्मी-पापा को हम दोनों की शादी की बात कर लोगे। इतना सब होने के बाद अब देर करना उचित नहीं होगा।” 

रोहित ने उसे पूरी तरह आश्वस्त करके कहा, “आज ही मम्मी-पापा से बात करके तुम्हेंं फ़ोन करता हूँ।” वह सोनम को कॉलेज के बाहर उतार कर चला गया। तन मन से टूटी बिखरी सोनम घर पहुँची। मम्मी घर आ चुकी थी और किचन में व्यस्त थी। आहट सुनकर बाहर आई। सोनम का चेहरा भय और लज्जा से सफ़ेद पड़ गया था। सरिता उसे देख कर घबरा गई और बोली, “क्या हुआ? तुम्हारी तबीयत तो ठीक नहीं लग रही है।”

सोनम ने मम्मी को टालते हुए कहा कि सिर में बहुत दर्द है। अब मैं ज़रा सोने जा रही हूँ। सरिता ने ज़िद करके उसे चाय पिलायी। 

सोनम सोने का बहाना करके लेट गई पर नींद उससे कोसों दूर थी। वह बैचनी से अगली सुबह का इंतज़ार करने लगीं। अब उसे रोहित के फ़ोन का बेसब्री से इंतज़ार था। रात भर वह बैचनी से करवट बदलती रही। देर तक जगने के कारण सोनम सवेरे देर तक सोती रही मम्मी चाय-नाश्ते के लिए बुलाने आई पर उसने मना कर दिया। मम्मी-पापा के जाते ही सोनम उठ बैठी। थोड़ा-सा नाश्ता कर रोहित के फ़ोन का इंतज़ार करने लगी। जब दोपहर तक कोई फ़ोन न आया तो उसने स्वयं ही रोहित को फ़ोन मिलाया पर उधर से स्विच ऑफ़ का संदेश आ रहा था। पूरा दिन बीत गया रोहित का कोई आता पता नहीं था। बीमारी का बहाना बना वह 2 दिन घर में ही बैठी रही। क्या करे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। एकाएक याद आया कि उसने बहुत बार रोहित को कॉलेज के पास एक पान वाले की दुकान पर खड़े देखा था। वह कॉलेज तो गई पर दो लेक्चर अटैंड करके कॉलेज के गेट पर आ खड़ी हुई। उसे पता था कि रोहित इसी समय वहाँ आता था। यह स्वयं रोहित ने ही उसे बातों-बातों में एक दिन बताया था। उसका अनुमान सही निकला रोहित वहीं खड़ा बेफ़िक्र हो कर सिगरेट पी रहा था उसकी पीठ सोनम की ओर थी। सोनम दबे पाँव जा कर वहाँ खड़ी हो गई। रोहित आहट सुन के पीछे पलटा तो सोनम, बिना समय गँवाएँ बोल उठी, “क्या बात है रोहित तुम तो अपने मम्मी-पापा से बात कर विवाह पक्का करने की बात कर रहे थे? अब तुम फ़ोन स्विच ऑफ़ करके कैसे बैठे हो?”

वहाँ सड़क पर आसपास खड़े अन्य लोग भी उनकी बातें सुनने खड़े हो गए। रोहित का चेहरा अपमान और क्रोध से तमतमा गया वह बहुत चालाकी से सोनम का हाथ पकड़ा और दूर एक पेड़ के पास ले आया। वहाँ आसपास कोई न था। वह गरज कर बोला, “तुमने क्या शादी-ब्याह को गुड्डा-गुड़िया का खेल समझ रखा है? तुम कहोगी और मैं बारात लेकर आ जाऊँगा? अरे, अभी तो मेरा कॉलेज भी पूरा नहीं हुआ। अभी सब भूल जाओ।”

यह सुन कर सोनम के तन बदन में आग लग गई। वह चिल्ला कर बोली, “और वह सब जो तुमने फ़ार्म हॉउस में किया वह क्या था?”

इस पर रोहित बेशर्मी से हँसते हुए कहने लगा, “तुम अपनी इच्छा से मेरे साथ वहाँ गई थी। जो कुछ वहाँ हुआ उसमें तुम्हारी इच्छा भी शामिल थी।”

यह कह कहते हुए रोहित वहाँ से चला गया। सोनम सकते में आ गई। क्या यह वही रोहित है जिसने उसे जीना सिखाया था? प्यार करना सिखाया था? वह गिरती-पड़ती कॉलेज के अंदर चली गई। सामने ही गीता दिखाई दे गई। वो सोनम को देख हतप्रभ रह गई और बोली, “सोनम क्या हो गया? तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं लग रही है चलो तुम्हेंं घर छोड़ देती हूँ।”

बेबसी, लाचारी और घबराहट से सोनम टूट के रो पड़ी। गीता समझ गई कि कहीं गहरी चोट खाई है। ज़्यादा न पूछते हुए गीता बोली कि सोनम तुम मेरे घर चलो वहीं सब बातें करेंगे। सोनम की हिम्मत बँधी वह गीता के साथ उसके घर चली गई। गीता की मम्मी सोनम को देख बहुत ख़ुश हुईं और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेर आशीर्वाद देते हुए उसका स्वागत किया। वो उन दोनों के लिए खाना बनाने चली गईं तो गीता उसे अपने कमरे में ले गई। कमरे में आते ही सोनम के धैर्य का बाँध टूट गया और वह फूट-फूट कर रोने लगी। गीता ने उसे चुप कराते हुए रोने का कारण पूछा तो सोनम ने अपनी बर्बादी की पूरी कहानी उसे सुना डाली। यह सारी बात सुन कर गीता स्तब्ध रह गई। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि सोनम जैसी बुद्धिमान लड़की रोहित जैसे मक्कार लड़के के जाल में कैसे फँस गई? गीता और सोनम की दोस्ती बहुत सच्ची और पुरानी थी। इसलिए वह सोनम से बोली कि जो हुआ बहुत ग़लत हुआ इसीलिए मैंने मैंने तुम्हेंं मशवरा भी दिया था। अब बताओ आगे क्या और कैसे करना है? 

सोनम बोली, “मैं रोहित के माता–पिता से मिल कर उसके बारे में सब कुछ बताना चाहती हूँ।”

गीता को याद आया कि उसका चचेरा भाई भी तो रोहित वाले कॉलेज में ही पढ़ता है। वह रोहित के बारे में सारी जानकारी जुटा लेगा। उसके बाद तुम रोहित के माता–पिता को सब बता देना। गीता ने उसी समय अपने चचेरे भाई अमन को फ़ोन करके रोहित के बारे में जानकारी जुटाने को कह दिया। अमन ने दो दिन का समय माँगा। 

सोनम दो दिन तक कॉलेज ही नहीं गई। वह बेक़रारी से अमन और गीता की प्रतीक्षा कर रही थी। अमन आज गीता के साथ रोहित की सारी जानकारी लेकर आने वाला था। मम्मी-पापा के जाते ही उसने राहत का साँस ली। 11 बजते-बजते अमन और गीता दोनों आ गए। दोनों के चेहरे गहन निराशा में डूबे हुए थे। उदासी के बादल बरसने को तैयार थे। यह देख सोनम की दिल की धड़कन रुकने लगीं। उसके बाद अमन ने रोहित की जो असली कहानी सुनाई उसे सुन कर सोनम तो लगभग मृतप्राय ही हो गई। अमन ने बताया कि रोहित एक बेहद आवारा क़िस्म का लड़का है। बिहार से यहाँ पर पढ़ने आया था। तीन साल से फ़ेल हो रहा है। उसके पिता खेती-बाड़ी करते हैं। अपना पेट काट-काट कर इसे पढ़ाई के लिए पैसा भेजते हैं जिसे रोहित अय्याशी में लुटाता है। कुछ अमीर घरों के बिगड़े लड़कों के साथ उसका उठना-बैठना भी है। कुल मिला कर रोहित बहुत ही चालबाज़ आवारा क़िस्म का लड़का है। अमन ने भाई होने ने नाते उन दोनों को रोहित जैसे लड़कों से दूर रहने की सलाह भी दी। अमन के जाते ही सोनम को घबराहट के कारण चक्कर आने लगे। गीता ने उसे पानी पिला कर धैर्य रखने की सलाह दी। वह जानती थी कि सोनम ऐसे चक्रव्यूह में फँस चुकी है जिससे निकलना असम्भव था परन्तु वह भी लाचार थी। इस मामले में वह उसकी कोई मदद नहीं कर सकती थी। कुछ समय बाद गीता भी अपने घर जाने के लिए उठ खड़ी हुई। अब उसके पास सोनम को कहने के लिए न कोई सुझाव था और न ही कोई सांत्वना के शब्द थे। सोनम को ऐसा महसूस हो रहा था मानो रोहित की मृत्यु हो गई हो और गीता मातम मनाने उसके घर आई हुई हो। गीता के जाने के बाद मम्मी भी आ गई। सोनम को देख कर बोली, “अरे, सोनम मैं नहा कर आती हूँ तुम चाय बना कर रखना।” सोनम जो मूर्तिवत बैठी थी उठ कर किचन में चली गई अचानक उसका ध्यान उस सारे भोजन पर गया जो मम्मी सवेरे उसके लिए बना कर गई थीं। एकाएक उसके मन में एक विचार आया उसने सारा भोजन एक अख़बार पर रखा और भागती हुई बाहर दूर पेड़ के नीचे बैठे भिखारी के पास चली गई उसने उसे भोजन देते हुए कहा, “बाबा भोजन खा लो आज हमने किसी का श्राद्ध कर्म किया था इस लिए दे रही हूँ।” भूखा भिखारी बड़े चाव से भोजन खाने लगा। इस तरह उसने रोहित के प्यार का श्राद्ध कर्म भी कर कर निष्प्राण सी घर आ गई। उसे होश ही नहीं था। वह स्वयं अपनी नज़रों से गिर चुकी थी। दुख का भयावह अँधेरा उसे लीलता जा रहा था। अब वह क्या करे अपना दुःख किसे सुनाए? मम्मी और पापा को जब उसकी कलंक गाथा का पता चलेगा तो उसका क्या हश्र करेंगे? यह सोच कर उसकी रूह काँपने लगी थी। पापा तो घर में ऐसा तूफ़ान और तमाशा खड़ा करेंगे जिसका कभी अंत न होगा। मम्मी जो जीवन भर ही पापा से दुखी रही थीं आज उसने शेष कसर पूरी कर डाली। वह सोचने लगी उसने भी मम्मी को सताने में कोई कसर बाक़ी नहीं छोड़ी। उसकी यह भूल मम्मी के प्राण ही ले लेगी। पापा तो शायद हमें घर से ही निकाल दें। यह सोचते-सोचते सोनम की पूरी रात आँखों में गुज़र गई। अगले दिन मम्मी पापा के जाने के बाद जब वह सोच में डूबी रही कि क्या करे तब अचानक उसके दिमाग़ में एक ख़्याल आया। उसके दिल में बिजली सी कौंध गई। वह उठी और धीरे-धीरे चलती हुई मम्मी के कमरे में जा पहुँची। उसे पता था कि मम्मी को सोने से पहले नींद की गोली सेवन करने की आदत है। उसके बिना उन्हें नींद ही नहीं आती है। मम्मी अपने पलँग के साइड टेबल में वह शीशी रखती हैं। सोनम ने बिना विलम्ब किये हथेली में बहुत सारी नींद को गोलियाँ ले लीं और पास रखे जग से पानी लेकर एक साथ सब गटक लीं। एक लम्बा श्वास लेकर वह वहीं मम्मी के पलँग पर लेट गई। मन में एक विचार आया कि चलो, मुझे किसी तरह इन दुखों से तो निज़ात मिल ही जाएगी। 

सरिता ने घर आकर कॉल बैल बजाई। उसने देखा कि दरवाज़ा तो अंदर से ही बंद है। बार-बार बैल बजाने पर जब दरवाज़ा न खुला तो सरिता ने पर्स में रखी अपनी दूसरी चाबी से दरवाज़ा खोला और अंदर आ गई उसने अंदर आकर उच्च स्वर में सोनम को पुकारा पर बार-बार पुकारने के बावजूद भी न तो कोई हलचल हुई और न कोई जवाब ही आया। वह सोनम के कमरे में देखने चली गई सोनम का कमरा ख़ाली था। अब वह दौड़ती हुई अपने कमरे में गई तो सोनम को अपने बिस्तर पर सोए हुए पाया। बार-बार उसे हिलाने पर भी जब उसकी नींद नहीं टूटी तो उसके पैरों तले की ज़मीन खिसक गई। वह घबरा कर दिव्या के मम्मी-पापा को बुला कर ले आई। सबकी बहुत कोशिशों के बाद भी जब सोनम को होश न आया तो उन्होंने बिना विलम्ब किये एम्बुलेंस बुलवा ली और सोनम को अस्पताल ले आए। डॉक्टर ने मुआयना करके बताया कि बहुत बड़ी मात्रा में नींद की गोलियाँ ली गई हैं। यह तो सुसाइड केस लगता है। डॉक्टर ने इलाज रोक कर पुलिस को सूचित कर दिया। दिव्या अस्पताल में सोनम का सिर अपनी गोद में लेकर एक बेंच पर बैठी रही। दिव्या के मम्मी-पापा और कुछ लोगों ने जब शोर मचाया तब जाकर डॉक्टर ने इलाज शुरू किया परन्तु उसने किसी भी प्रकार का आश्वासन देने से मना कर दिया। सरिता का शरीर घबराहट से बुरी तरह काँप रहा था। सोनम के पापा को भी ऑफ़िस में यह सूचना मिली तो वह क्रोध से आग बबूला हुए अस्पताल में आ पहुँचे उन्होंने आते ही सोनम और उसकी मम्मी को अपशब्दों से विभूषित करना आरंभ कर दिया। यह सुन कर सरिता की सहनशक्ति भी जवाब दे गई उसने भी समय और जगह को न देखते हुए घनश्याम पर व्यंग्य वाण चलाने आरंभ कर दिए। दोनों एक दूसरे पर दोषारोपण करने लगे। बड़ी कठिनाई से दिव्या के मम्मी-पापा ने उन दोनों को शांत करवाया। वहाँ खड़ी भीड़ को यह तो स्पष्ट हो गया कि लड़की ने अपने माता–पिता की उपेक्षा और लापरवाही के चलते ही यह ग़लत क़दम उठाया है। पुलिस भी आ पहुँची। 2घंटे तक सोनम के माता–पिता से पूछताछ होती रही। चार घंटे की कड़ी मेहनत के बाद डॉक्टरों ने सोनम के ख़तरे से बाहर होने की सूचना दी। गीता भी वहाँ आ पहुँची। उसने सोनम को रोहित द्वारा मिले विश्वासघात की पूरी कहानी सोनम के मम्मी-पापा को एकांत में ले जा कर सुना दी। यह सुन कर सोनम के मम्मी पापा दोनों ही तड़प उठे। सोनम की मम्मी का रो-रो कर बुरा हाल था। उसके पापा तो दीवारों से सिर पटक रहे थे। वह सोच रहे थे कि उनको बदमिज़ाजी, क्रोध, लापरवाही और उपेक्षा ने उनकी बेटी के जीवन को बर्बाद कर दिया। बाक़ी कसर रोहित ने पूरी कर दी। ऐसी परेशानी में दिव्या और गीता के परिवारों ने सरिता और घनश्याम का इस मुसीबत की घड़ी में पूरा साथ दिया। गीता ने रोहित की सारी जानकारी सोनम के मम्मी पापा को दे दी। उन्होंने पुलिस स्टेशन जा कर वहाँ रोहित के ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज करवाई जिसके आधार पर पुलिस ने रोहित के बारे में जाँच आरंभ कर दी। दिव्या और उसकी मम्मी सोनम के परिवार के लिए भोजन आदि की व्यवस्था करती रहीं। जब सोनम को होश आया तब उसने अपने मम्मी और पापा को अपनेे बेड के पास बैठे पाया। सोनम ने नफ़रत से मुँह फेर कर करवट बदल ली। सरिता और घनश्याम ने दोनों के हृदय बेटी की पीड़ा से विगलित हुए जा रहे थे। उस पर उसकी नफ़रत ने दोनों को अंदर तक हिला कर रख दिया था। दो दिन ऐसे ही बीत गए। गीता, और दिव्या, जबरन सोनम को कुछ खिला पिला जातीं थीं वरना वह खाने की ओर देखती तक नहीं थी। 

अब सोनम को अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी परन्तु सोनम ने वापिस उस घर, उस सोयायटी में जाने से इंकार कर दिया। दिव्या और गीता के मनाने पर भी वह नहीं मानी। अपनी ज़िद पर अड़ी रही। अंत में यही तय हुआ कि परीक्षा तक सोनम गीता के घर रहेगी। घनश्याम जी ने अपना तबादला दूसरे शहर में करवाने की अर्ज़ी दे दी। सरिता ने भी अपने कॉलेज से स्वेच्छा से रिटायर मेन्ट लेकर शेष जीवन सोनम की सहेली बन कर बिताने का निर्णय ले लिया। 

समय बीतता गया। परीक्षा समाप्त होते ही सोनम अपने मम्मी पापा के साथ दूसरे शहर चली गई। सोनम ने विवाह करने से इंकार कर दिया। रोहित को बहुत सी धाराओं के तहत 5 साल की जेल हो गई। घनश्याम अंदर ही अंदर आत्मग्लानि से घुलने लगे। सरिता भी जवान बेटी को ऐसे जोगन सी बनी देखती तो उसका दिल छलनी-छलनी हो जाता। वह सोचती काश हम दोनों पहले ही इस बात को समझ लेते कि युवा होते बच्चों को दोस्त बना कर रखना चाहिए। उन्हें माता–पिता के रूप में हिटलर नहीं दोस्त चाहिए होता हैं। अपने मम्मी पापा को देख सोनम को भी बहुत दुख होता था। वह दोनों दुख और पश्चाताप में घुलते रहते और असमय ही बूढ़े हो गए थे। उसे अपनी नादानियों पर बहुत पछतावा होता काश वह भी मम्मी पापा से प्रतिशोध लेने की ज़िद न करती, यदि मैं स्वयं ही आगे बढ़ कर मम्मी से अपनी समस्या कह देती तो क्या इस से इसकी हार जाती? मम्मी कुछ सलाह मशवरा ही देती या नाराज़गी दिखा देती इससे क्या वह कमतर हो जाती। 

घनश्याम तो नए स्थान पर नए परिवेश में अपनी नौकरी में व्यस्त हो गए। सोनम और उसकी मम्मी सरिता का समय काटे नहीं कटता था। सरिता एक पढ़ी-लिखी महिला थीं। कुछ सोच कर उन्होंने घर में ही एक कोचिंग सेंटर खोल लिया। यह देख सोनम ने भी छोटे बच्चों को निःशुल्क पढ़ाना आरम्भ कर दिया। अपने साथ हुए धोखे को मद्देनज़र रख कर उसने मम्मी के पास पढ़ने आने वाले युवा होते बच्चों को समाज में व्याप्त धोखे और ग़लत संगत से बच कर रहने के लिए समझाना आरंभ कर दिया। वह उनकी समस्याओं को भी सुलझाने में मदद करती थी। धीरे-धीरे उसका मन शान्त होने लगा। उसे यह तसल्ली होने लगी कि मम्मी-पापा की लापरवाही और उसकी नादानियों से जो ज़ख़्म उसके दिल में लगे थे वह तो धीरे-धीरे भर ही जाएँगे परन्तु वह युवा होते हुए बच्चों को इस प्रकार की ग़लती करने से रोक पाने में मददगार हो सकती है। 

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टिप्पणियाँ

पाण्डेय सरिता 2022/08/17 07:55 PM

बेहद संवेदनशील विषय पर लिखा आपने! बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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