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लागा चुनरी में दाग़ – 1

नीता के घर से कुछ ही दूर दो शानदार बँगले बने हुए थे। दोनों बिल्कुल एक जैसे थे, मानो जुड़वाँ भाई। विभिन्न सुंदर फूल पौधों वाले बग़ीचे से घिरे यह बँगले आते–जाते सभी राहगीरों का ध्यान अपनी ओर खींचते थे। नीता भी अक़्सर, कॉलेज जाते समय उन बँगलों को निहारती जाती थी। पहले वाले बँगले की मालकिन देविका जी से तो उसका परिचय भी था। दूसरे बँगले के बाहर अक़्सर एक सुदर्शन सा युवक दिखाई दे जाता था। कभी अपनी कार को साफ़ करता हुआ, कभी गेट के पास किसी से बातचीत करता हुआ दिखता। अक़्सर वह युवक उसे तिरछी नज़र के देख कर मन्द-मन्द मुस्कुराता भी था। नीता पलकें झुका, सिर झुकाए वहाँ से निकल जाती थी। कुछ दिन यह सिलसिला चलता रहा। नीता का अब कॉलेज में अंतिम साल ही था। 

नीता, अब नौकरी करके आत्मनिर्भर बनना चाहती थी परन्तु उसके पापा के, उसे लेकर बड़े-बड़े सपने थे वह जानते थे कि नीता पढ़ाई-लिखाई में बहुत ज़हीन है इसलिए वह उसे आगे की पढ़ाई के लिए विदेश भेजना चाहते थे। नीता की माँ, नीता को विवाह के बन्धन में बाँधने को आतुर थी परन्तु, मनुष्य तक़दीर के सामने हार जाता है होता वही है जो ईश्वर को मंज़ूर होता है। नीता, न तो उच्च शिक्षा के लिए विदेश ही जा पाई और न ही वह विवाह के बंधन में ही बँध पाई। ऊपर बैठे, ईश्वर ने तो उसकी तक़दीर में कुछ और कहानी ही लिखी हुई थी। तक़दीर के लेख कौन पढ़ पाया है और कौन मिटा पाया है! 

अचानक एक मनहूस दिन, सुप्त अवस्था में ही नीता के पिता को हार्ट अटैक आया और उनकी मृत्यु हो गई। पूरे परिवार के सपने धूल में मिल गए। नीता और उसकी माँ के जीवन में मानो मुसीबतों की सुनामी आ गई थी। उनका कोई ऐसा आत्मीय या ऐसा रिश्तेदार भी न था जो इस मुसीबत की घड़ी में उनको सहारा देता और उन पर आए इस आकस्मिक, कष्ट से उबारने में मदद देता। नाम के लिए तो नीता के एक चाचा थे, परन्तु वो बरसों पहले ही विदेश में परिवार सहित बस गए थे। नीता के एक मामा भी थे, जो बेचारे बहुत ही निर्धन थे। अपने परिवार का भरण-पोषण ही बहुत कठिनाई से कर पाते थे। उनसे कुछ आशा रखना व्यर्थ ही था। मामा जी बेचारे यह ख़बर सुन कर इधर–उधर से माँग कर कुछ रुपयों का जुगाड़ करके आ तो गए पर बहिन और भाँजी की कुछ आर्थिक मदद नहीं कर सकते थे। बस बहन और भाँजी को थोड़ी सी हिम्मत बँधा कर चले गए; माँ और बेटी ही एक दूसरे के आँसू पोछती रहती थीं। 

पिता की आधी पेंशन नीता की माँ को मिलनी शुरू हो गई। नीता ने बड़ी समझदारी से उसके पिता ने जो धन उसके के विवाह के लिए जमा किया था और जो उनकी थोड़ी सी सेविंग्स थी उनको सहेज कर अपनी माँ के नाम एक एफ़ डी बनवा दी। नीता अब, मन-मार, अपने जीवन की सारी उमंगों और सपनों को अनदेखा करके किसी अच्छी सी नौकरी की तलाश में निकल पड़ी। वह अपने कॉलेज की टॉपर रह चुकी थी। बहुत सोच कर उसने सबसे पहले अपने कॉलेज के प्रिंसिपल से ही सम्पर्क किया। कॉलेज के स्टाफ़ को भी उस पर बहुत ही गर्व था वो सबके स्नेह की पात्र भी थी। उसने अपने कॉलेज के प्रिंसिपल से सम्पर्क करके उनसे अपनी इस समस्या के बारे में विचार-विमर्श किया और मदद माँगी। इस बार तो नीता की तक़दीर ने उसका साथ दे दिया संयोग से उसी कॉलेज में ही लेक्चरारशिप कर लिए कुछ रिक्त स्थान थे। उनमें से एक स्थान नीता के विषय का भी वहाँ ख़ाली था। बस बात बन ही गई। अब एक छोटे से औपचारिक इंटरव्यू के बाद ही नीता को वहाँ लेक्चरार की पोस्ट पर नियुक्त कर लिया गया। नीता ने भी प्रिंसिपल साहब का हार्दिक धन्यवाद किया नीता अब बहुत ही लगन और मेहनत से अपने अध्यापन कार्य में जुट गई। नौकरी करते-करते दो साल ऐसे ही गुज़र गए। नीता की माँ, अपनी बेटी के लिए चिंतित रहती थी। मन ही मन उसे नीता पर दया भी आती थी बेटी के जीवन के स्वर्णिम दिन रोज़ी-रोटी कमाने के फेर में बीते जा रहे थे। उसकी संगी सहेलियाँ, बेफ़िक्र हो कर बड़े आनन्द से घूमतीं-फिरतीं अपना जीवन बिता रहीं थीं। उनमें से कुछ एक के तो विवाह भी हो चुके थे परन्तु नीता, पिता के न रहने पर घर की सारी ज़िम्मेदारी वहन करते हुए अपनी नौकरी और और घर की उलझनों के जाल में उलझी अपना जीवन बिता रही थी। 

एक दिन उनकी पड़ोसन, देविका जी उनके घर आईं। उनकी बेटी का जन्मदिवस था। वह, नीता से बहुत ही स्नेह रखती थीं। इसलिए उन्होंने बड़े प्यार और मनुहार से नीता को भी अपने घर पर आमंत्रित किया। पिता की मृत्यु के बाद, नीता का मन, अब किसी भी उत्सव मनाने या सामारोह में आने जाने से उचाट हो चुका था। उसकी माँ जब बहुत आग्रह किया तब ही उसने वहाँ जाने के लिए हामी भरी। कॉलेज से आते हुए नीता, बच्ची के लिए गिफ़्ट भी पैक करवा लाई थी। बहुत दिनों के बाद उसने अपनी मनपसन्द गुलाबी रंग की शिफ़ॉन की साड़ी पहनी और हल्का-फुल्का मेकअप कर वहाँ जाने के लिए तैयार हो गई माँ ने जब उसे तैयार देखा तो उसके दिल में एक हूक सी उठी वह सोचने लगी कि देखो, सजने-सँवरने के दिनों में युवा पुत्री जोगन सी बन गई है। आज जरा सा ही सजने-सँवरने पर उसका रूप-रंग कितना निखर कर खिल आया है। 

देविका जी ने अपने बँगले के लॉन में ही जन्मदिन का भव्य आयोजन किया था। शहर के बहुत से गणमान्य लोग उस पार्टी में उपस्थित थे। नीता, संकुचित सी हो कर अनजान लोगों में बैठी बहुत स्वयं को बहुत असहज सा महसूस कर रही थी। जब अचानक देविका जी की नज़र जब नीता पर पड़ी तो, वह बड़े उत्साह से उसका स्वागत करने आगे बढ़ आई और तुरंत वहाँ से घूमते हुए वेटर्स को संकेत से बुला नीता के लिए कोल्ड ड्रिंक और स्नैक्स आदि मँगवाए बड़े प्यार से नीता से बोली गुमसुम मत बैठो, तुम भी पार्टी को एन्जॉय करो। नीता तो वहाँ किसी को जानतीं भी नहीं थी इसलिए चुप ही बैठी रही। अचानक, पड़ोस वाले बँगले में रहने वाला वही सुदर्शन युवक, न जाने कब, अचानक उसके सामने आकर खड़ा गया। उसने नीता की ओर अपनी भुवनमोहनी मुस्कान से देखते हुए कहा, “अरे, आप तो हमारी पड़ोसिन हैं ना?” फिर हँसते हुए स्वयं ही बोलता गया, “देखिए, इतने पास रहते हुए भी हम लोगों का अभी तक आपस में परिचय तक नहीं हुआ।” नीता ने औपचारिकता वश मुस्कुराते हुए, बड़ी शालीनता से अपना परिचय देते हुए बताया, कि मैं नीता हूँ, सामने वाले घर में ही रहती हूँ और हिंन्दू कॉलेज में अँग्रेज़ी की लेक्चरार हूँ। परिचय दे नीता चुप हो गई। युवक मुस्कुरा कर बोला, “मैं रोहित। हूँ, मैं भी एक विदेशी कम्पनी में नौकरी करता हूँ। मेरे पापा का विदेश में कारोबार है। वो काम के सिलसिले में वहीं रहते हैं। कभी-कभी ही यहाँ पाते हैं। मैं अपनी मम्मी के साथ यहाँ अकेला ही रहता हूँ।” नीता चुपचाप सिर झुकाए सब सुनती रही। रोहित भी वहाँ से उठ कर अन्य मेहमानों के पास जा कर बतियाने लगा। 

एक दिन नीता की कॉलेज जाने वाली बस छूट गई। नीता वहीं खड़ी हो कर किसी रिक्शा का इंतज़ार कर रही थी। रोहित अपनी कार से कहीं जा रहा था। जब उसने वहाँ नीता को अकेले खड़े देखा, तो वह मुस्कुराते हुए चंचल निगाहों को देखते हुए बोला, “अरे लगता है आज आपकी बस छूट गई? क्यों?” उसने कार को वहीं रोक लिया और कहने लगा, “कोई बात नहीं, मैं भी उधर ही जा रहा हूँ। मैं आपको कॉलेज तक छोड़ दूँगा।” वह बिना नीता के उत्तर की प्रतीक्षा करे, झटपट एक कुशल चालक की तरह कार का दरवाज़ा खोल कर कर खड़ा हो गया। नीता भी मना न कर पाई। रोहित के साथ कार में बैठ कर नीता के दिल धड़कने लगा। मन मे नई अनोखी सी तरंगें उठने लगीं। रोहित कनखियों से उसे देख कर मन्द-मन्द मुस्कुराते हुए गाड़ी चला रहा था। नीता की धड़कनें कार की रफ़्तार के साथ तेज़ हो रहीं थीं। नीता के मन के वह कोमल भाव, जज़्बात जो उसने बरसों से अपने मन में जबरन दबाए हुए थे अब उभरने लगे थे। आज, रोहित के साथ गाड़ी में बैठी तो उसे पहली बार ऐसा महसूस हुआ मानो वह अपने यौवन, प्यार की कोमल भावनाओं को छिपा-छिपा कर स्वयं पर ही अत्याचार कर रही थी। उसके कॉलेज का गेट गया था, वह नम्रता से रोहित को मन्द मुस्कान से धन्यवाद करके गाड़ी से उतर गई। कॉलेज से वापिस आने के बाद भी वह रोहित के बारे में ही सोचती रही। उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा और बातों में अपनापन उस पर मानो जादू सा कर गया था। उसके दिल मे एक हलचल सी मची थी। 

नीता के पड़ोस के, राधास्वामी के मंदिर से श्रद्धालुओं का एक समूह, चार धाम की यात्रा पर जा रहा था। नीता की माँ अपने पति की मृत्यु के बाद घर में क़ैद-सी हो कर रह गई थी। नीता ने अपनी माँ को भी उस तीर्थ यात्रा पर भेजने का निश्चय किया, जिससे उसकी माँ को भी इस उदासी और निराशा के अंधकार से बाहर निकलने का मौक़ा मिले और उनको अपने पति के बिना जीने की आदत भी पड़े। नीता ने अपनी माँ को बहुत कठिनाई से तीर्थ यात्रा के लिए मनाया। माँ के जाने के बाद, नीता को बहुत ही अकेलापन और उदासी सी महसूस होने लगी। वैसे उसका आधा दिन तो कॉलेज में ही बीत जाता था। घर आकर, घर के काम में व्यस्त हो जाती। बस रविवार को उसे कुछ समय मिलता था। एक दिन रविवार ही था। नीता काम ख़त्म करके दोपहर को सो गई तो शाम तक सोती ही रही। नीता की नींद कॉल-बैल की आवाज़ से टूटी। उसके काले घने बाल उसके शाने पर बिखरे थे और आँखों में नींद की खुमारी भरी थी। धानी चुनरी उसके गले में लिपटी थी। नीता की ख़ूबसूरती एक दहकते हुए अंगारों सी दिख रही थी। वह जल्दी से घबरा कर उठ बैठी, दरवाज़ा खोलने पर देविका जी और रोहित खड़े दिखाई दिए। वह दोनों हँस कर एक ही स्वर में बोले, देखो तुम्हारे घर बिन बुलाए मेहमान आ गए हैं। देविका जी ने उसे बताया कि रोहित बहुत दिनों से, तुम्हारे घर आने का आग्रह कर रहा था। अब तुम्हारे घर, अकेले तो आने की वो हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। इसलिए मुझे साथ लेकर आया है। हमने सुना है कि तुम और तुम्हारे पापा ने घर को बहुत अनोखे ढंग से सजाया हुआ था। इसलिए मैं भी यहाँ आने को बहुत उत्सुक थी। तुम्हारी कलाप्रियता की चर्चा तो मैंने बहुत से लोगों से सुनी थी इसलिए यहाँ आने की इच्छा रोक नहीं पाई। यह सुन कर नीता के गाल शर्म से गुलाबी हो उठे। वो बोली, “ऐसा कुछ ख़ास तो नहीं है। पापा, नौकरी के दौरान देश-विदेश जाते रहते थे। वहाँ से उनको जो अनोखी कला के नमूने मिलते, ले आते थे।” रोहित अपलक नीता को ही निहार रहा था। रोहित का उसे ऐसे देखने से वह असहज सी हो उठी। उधर रोहित भी उसके रूप-रंग को देख हैरान सा था। उसे, नीता का सौंदर्य किसी मायावी दुनियाँ में खींचे लिए जा रही था। इस समय दोनों के दिलों में प्यार के बीज अंकुरित हो चुके थे, मन में प्यार की अनेक तरंगें हिलोरें ले रहीं थीं। देविका जी और रोहित बहुत देर तक बड़े चाव से नीता के घर की साज-सज्जा को ही देखते रहे फिर जलपान करके जाने लगे। उसी समय रोहित और नीता की नज़रें अचानक मिल गईं। बस, उस एक नज़र में ही रोहित नीता के दिल को लेता गया और अपना दिल उसे को देता गया। 

अब नीता दिन–रात रोहित के ही ख़्यालों में ही डूबी रहती। वह मन ही मन जाने अनजाने ही अपनी तुलना देविका जी से करने लगी और सपने देखती कि रोहित से विवाह होने के बाद तो वह भी उनकी पड़ोसन बन जाएगी। उसके दिल में देविका जी की एक ख़ास जगह बन गई थी और एक बहुत ख़ास और अनोखा-सा रिश्ता बन चुका था। नीता के कॉलेज आते–जाते समय रोहित अक़्सर उसे अपने बँगले के गेट पर खड़ा दिखता। आँखों ही आँखों से प्यार के पैग़ाम देता रहता। नीता तो लोक-लाज के डर से आँखें भर उसे देख भी नहीं पाती थी। 

सावन का महीना था। एक दिन जब नीता कॉलेज से लौट रही थी तब बस से उतरते ही काली-काली घटाएँ टूट कर बरसने लगी। नीता नें शिफ़ॉन की साड़ी पहनी हुई थी, वह भीग कर तन से चिपक गई। नीता पर हर आने–जाने वालों की निगाहें पड़ रही थी उन्हें झेलना उसके ही कठिन हो रहा था। उसी समय, रोहित एक देवदूत की तरह वहाँ आ पहुँचा। वह कार का दरवाज़ा खोल कर नीता को कार में बिठा कर ले गया। लाज से नीता की आँखें झुकी जा रहीं थीं। नीता के घर के सामने कार रोक कर रोहित धीमे स्वर में नीता से बोला कि वह आज का डिनर उसके घर पर ही करेगा, यह कहकर उसने तेज़ी से कार मोड़ी और वहाँ से चला गया। यह सुन कर नीता सोच में डूब गई माँ की अनुपस्थिति में रोहित का ऐसे उसके घर में अकेले आना क्या सही होगा? पर दूसरे ही पल जब उसके मन में रोहित का अपनापन और उसकी भुवनमोहनी मुस्कान की याद आई तो वो सब कुछ भूल गई। नीता ने शाम से ही डिनर बनाने की तैयारी शुरू कर दी। पाक-कला की परीक्षा की तरह उसने आज बहुत ही सोच-समझ के खाना बनाना शुरू किया। दाल मखनी, मलाई कोफ़्ता, भरवाँ भिंडी, दही-भल्ले और मेवा मखाने की खीर इतना सब बना कर वह पसीने से तर हो गई। अब उसने जल्दी से शॉवर लिया और तैयार हो गई। उसने काली जॉर्जेट की साड़ी के साथ सुनहरे रंग का ज़री का ब्लाउज़ पहना। कानों में हीरे के कर्ण फूल पहन और बेक़रारी से रोहित का इंतज़ार करने लगी। आठ बजे ही रोहित भी ग्रे रंग का सूट और मैरून टाई लगाए, हाथ में एक उपहार का पैकेट लिए आ गया। वह आते ही नीता के सौंदर्य को अपलक निहारने लगा। नीता, शरमा के नीची निगाह कर पलट कर चली गई। नीता सबसे पहले हिम शीतल पाइन एप्पल का जूस उसके लिए लेकर आई। रोहित ने जूस लेने के बहाने नीता की गोरी और नाज़ुक कलाई को पकड़ कर उसे वहीं अपने पास बिठा लिया। वह आँखों ही आँखों से नीता के रूप का रस पान करने लगा तब नीता सिर से पाँव तक सिहर उठी और हाथ छुड़ा कर किसी तरह किचेन में भाग खड़ी हुई। दाल सब्ज़ी सब गर्म कर नीता ताज़े फुल्के सेकने लगी। डाइनिंग टेबल पर खाना सजा कर उसने रोहित को पुकारा, भोजन की मस्त ख़ुश्बू और स्वाद की प्रशंसा करते-करते रोहित की ज़ुबान थक ही नहीं रही थी। नीता सिर झुकाए सोच रही थी कि काश, उसे चिरन्तन, रोहित के साथ ही अपना जीवन बिताने और उसे इसी तरह प्यार से खाना खिलाने का सौभाग्य मिल जाए तो उसके जीवन की सारी उलझने सुलझ जाएँगी। उसे रोहित को उसके हाथों से बना खाना इतने बड़े चाव से खाते देख बहुत ख़ुशी का अनुभव हो था। धीरे-धीरे नीता और रोहित के सम्बन्ध बहुत प्रगाढ़ होते चले गए। नीता की माँ भी अब तीर्थ यात्रा से लौट आईं थीं। उसकी माँ ने जब नीता में नया सुखद बदलाव देखा तो उसके मन को बहुत सन्तुष्टि मिली। वह सोचने लगी कि नीता भी अपने स्वर्गवासी पिता की स्मृतियों के अँधेरों से बाहर निकल एक नई ज़िंदगी की शुरुआत करने लगी है। नीता की सादा मिज़ाज माँ ने यह जानने की कोशिश भी नहीं की, कि नीता की ख़ुशियों का स्रोत क्या है? वो डरती थी कि उसके पूछने से नीता की काँच से भी नाज़ुक ख़ुशियाँ हाथ लगाने से टूट न जाएँ। 

नीता और रोहित की नज़दीकियाँ बढ़ती ही जा रहीं थी। रोहित नियम से रोज़ नीता को उसके कॉलेज से लेने जाता और अपने और उसके घर से थोड़ा पहले ही उतार देता। दोनों एक साथ मिल कर अपने भविष्य के ताने-बाने बुनने रहते। स्वभाव से बहुत धीर-गम्भीर नीता अब कॉलेज में अपने साथियों के साथ भी हँसने-मुस्कुराने लगी। विद्यार्थियों को लेक्चर देते-देते अनायास उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती। अपनी बेहद गम्भीर लेक्चरार के स्वभाव में आए इस बदलाव को देख कर से वो सब भी हैरान हो जाते। 

अब नीता और उसकी माँ का जीवन भी सामान्य पटरी पर दौड़ने लगा था। नीता को अच्छी-ख़ासी पगार मिलती थी इसलिए आर्थिक संकट भी कुछ सीमा तक दूर हो गया था। रक्षाबंधन पर नीता की माँ का मन अपने भाई, के घर जाने के लिए लालायित हो उठा। नीता भी सहर्ष उनकी इच्छा का स्वागत करते हुए उनका उत्साहवर्धन किया। आनन-फ़ानन में नीता, मामा के बच्चों के कुछ उपहार, फल, मिठाई ख़रीद कर ले आई। उसकी माँ यह सब तैयारी देख कर प्रसन्न हो उठी। माँ को सहारनपुर की बस में बिठा नीता लौट रही थी कि रोहित ने उसे देख लिया। अब वह निर्भीक हो कर नीता के घर के चक्कर लगाने लगा। नीता को रोहित का ऐसे रोज़ अकारण आना अच्छा नहीं लग रहा था। वह बहुत समझदार लड़की थी, वह नहीं चाहती थी कि रोहित के ऐसे रोज़-रोज़ आने–जाने पर कोई देख कर कोई उसके चरित्र पर उँगली उठाए। वह उच्च संस्कारों में बँधी होने के कारण रोहित से प्यार और लगाव होते हुये भी रोहित का इस तरह आने जाने को अनुचित समझती थी। उसने बहुत बार दबे स्वर में अपने मन की इस उलझन रोहित के सामने स्पष्ट कर दी। रोहित ने उसकी बात को एक कान से सुन दूसरे कान से निकाल दी। उसने पड़ोस के लोगों को नज़रअंदाज़ कर नीता के घर आता–जाता रहा। एक दिन, रोहित ने, नीता से फिर उसके हाथ का बना खाना खाने का प्रस्ताव रखा। अब नीता संकोचवश इंकार भी न कर पाई। नीता के घर स्वादिष्ट भोजन करने के बाद रोहित बड़े अधिकार से नीता के, बेडरूम में जाकर वहीं पसर गया। नीता ने हाथ जोड़ कर उसे अपने घर लौटने के लिए बहुत मिन्नत की परन्तु रोहित ने उसकी बातों को अनसुना कर दिया। वह बड़े इत्मिनान से अपने जूते खोल कर, आराम से नीता के बेड पर निस्संकोच लेट गया। यह देख नीता बहुत गम्भीर हो गई और बोली, “रोहित यह ग़लत बात है। किसी को मालूम हो गया कि तुम इस समय मेरे घर पर हो तो पूरी सोसाइटी में हम दोनों की बहुत बदनामी हो जाएगी। अभी तुम अपने घर पर लौट जाओ। अभी तुम जाओ। हम दोनों की शादी हो जाने दो उसके बाद मैं तुम्हें कभी भी स्वयं से दूर नहीं होने दूँगी।” 

रोहित ने बात को फिर एक बार अनसुनी कर दिया। उसने नीता को लपक कर गोद में उठा लिया और बेड पर लिटा दिया, ख़ुद भी साथ में लेट कर बोला, “अरे नीता सिर्फ़ आज ही तो हम दोनों को एक रहने रहने का सुअवसर मिल रहा है। कल से तो तुम्हारी माँ भी आ जायेगी। ऐसा एकांत हमें फिर नहीं मिलेगा।। तुम ज़्यादा सोचो मत और परेशान मत हो। तुम अपनी माँ को तो शादी के लिए मना ही लोगी। मेरी मम्मी भी मान जाएगी। बस मेरी मम्मी देखने में तो बहुत आधुनिक लगती है परन्तु अपने मन से पूरी तरह भारतीय संस्कृति में ढली हुई हैं। एक बार हम दोनों की सगाई हो गई तो फिर शादी तक हमें मिलने की भी अनुमति नहीं मिलेगी। ऐसी आज़ादी भी नहीं मिल पाएगी।” 

नीता ने रोहित की बात को काटते हुए कहा रोहित, “अभी तो हम दोनों के परिवार, आपस में मिले तक नहीं हैं। वो लोग तो हमारे सम्बन्धों के बारे में जानते तक नहीं हैं। शादी के बारे में तो क्या, सगाई के बारे में भी कुछ तय नहीं हुआ। तुम तो बस बड़े-बड़े हवाई महल बनाते जा रहे हो। मेरे घर में तुम्हारा डिनर के लिए आने तक की बात तो ठीक थी परन्तु रात को तुम्हारा यहाँ मेरे घर रुकना मुझे तो बहुत अनुचित लग रहा है।”

यह सुन कर रोहित क्रोध में आग बबूला हो कर उठ खड़ा हुआ और ज़ोर से चिल्ला कर बोला, “नीता, सच बात तो यह है कि तुम्हें, न तो मुझ पर और न ही मेरे प्यार पर विश्वास है। क्या दकियानूसी, जाहिल लड़कियों की तरह बहाने पर बहाने बना रही हो।” 

ऐसा कह कर वह क्रोध में बेड से उठ कर खड़ा हुआ और आवेश में पैर पटकते हुए जाने लगा। यह देख, नीता घबरा गई। वह रोहित से सच्चे दिल से प्यार करती थी। उसे रोहित की नाराज़गी बर्दाश्त नहीं हो पाई। अब उसका दिल भी, पसीज कर व्याकुल हो उठा उसने, लपक कर रोहित का हाथ पकड़ लिया और बोली, “देखो रोहित मुझे तुम पर और तुम्हारे प्यार पर पूरा विश्वास है पर मैं दुनिया के रस्मो-रिवाज़ से डरती हूँ।” नीता को कुछ नर्म पड़ते देख रोहित ने नीता को गोद में उठा लिया और बड़े प्यार से बोला मियाँ बीवी राज़ी तो क्या करेगा काज़ी यह कर उसे बेड पर लिटा दिया। बहुत देर तक वो दूसरे की बाँहों में सिमट, प्यार के अलौकिक संसार में डूबे रहे। जब रोहित ने देखा कि नीता अब पूरी तरह उसके रंग में पूरी तरह आत्मसात हो चुकी है तो वह अपनी दैहिक प्यास बुझाने को आतुर हो उठा। नीता भी अपनी सुध बुध खो बैठी थी वह उसी के रंग में रँग गई थी। सही और ग़लत सोचने का दोनों को ही होश कहाँ था। जब ध्यान आया तब वह सब कुछ लुटा चुकी थी। होश में आने में अब क्या समझदारी थी नीता ने घबरा कर जल्दी सेअपने कपड़े समेटे और वॉशरूम में घुस गई। उसका तन-मन घबराहट और उत्तेजना से थरथरा रहा था। हाय, वह यह क्या कर बैठी? वह बड़ी देर तक शॉवर के नीचे ही खड़ी नहाती रही। कुछ देर बाद उसे रोहित की आवाज़ सुनाई दी वह कह रहा था, “नीता, मैं जा रहा हूँ। बहुत देर हो चुकी है, तुमसे फिर मुलाक़ात होगी।” वॉश रूम से बाहर निकल कर नीता बहुत ग्लानि का अनुभव कर रही थी मानो भरे बाज़ार भरे किसी ने उसे अपमानित कर दिया हो। 

उसने सुबह उठ कर बड़े बेमन से चाय बनाई। कॉलेज जाने का मन ही नहीं हो रहा था। हर चीज़ में कल रात की यादें बिखरी पड़ी थी। उसका कहीं पर भी मन नहीं लग रहा था। वह गहरे अपराध बोध में डूबा जा रहा था। उससे रहा न गया। बेचैनी दूर करने के लिए उसने रोहित को को फोन लगाया। काफ़ी देर बाद रोहित ने फोन उठाया, बोला, “क्या बात है? फोन क्यों किया?” 

रोहित के बदले-बदले सुर सुन कर नीता हैरान सी रह गई। संकोच से बोली, “ऐसे ही दिल घबरा रहा था सोचा तुम्हें फोन कर लेती हूँ।”

रोहित ने कहा, “नीता, ध्यान से सुनो, मेरे प्रोमोशन के लिए जल्द ही एग्ज़ाम होने वाले हैं। अब मुझे पढ़ाई भी करनी है इसलिए प्लीज़, तुम मुझे बार-बार बेवज़ह फोन करके मुझे डिस्टर्ब मत करना।”

नीता बहुत हैरान और हताश सी हो गई। रोहित के ऐसे व्यवहार ने उसे निराशा की गहरी खाई में धकेल दिया। माँ भी वापिस आने वाली थी। एक सप्ताह बाद उसने रोहित को फोन किया तो रोहित ने उसे बताया कि उसने सारे एग्ज़ाम क्लियर कर लिए हैं अब वह ट्रेनिंग के लिए जल्द ही ही विदेश जाने वाला है। वहाँ से आकर वह अपनी मम्मी से हम दोनों के विवाह के बारे में बात करेगा। यह सुन कर नीता का दिल घबराहट से ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। उसने रोहित से कहा कि वह रोहित के बिना तीन महीने कैसे बिताएगी? उसे बहुत घबराहट सी हो रही है? उसकी बात को अधूरी ही सुन कर रोहित ने बीच में ही फोन को काट दिया। नीता हतप्रभ सी खड़ी रह गई। वह बहुत चिंतित हो उठी। 

माँ भी अब वापिस आ चुकी थी। नीता की माँ अब बहुत ख़ुश थी और ख़ुद को बहुत ही तरो-ताज़ा-सा अनुभव कर रही थी। नीता को अब तो अपनी माँ के सामने जाने में भी शर्म सी आ रही थी। अपराध बोध की भावना से वह दबी जा रही थी। वह सोचने लगी कि उससे जाने–अनजाने बहुत बड़ी भूल कर दी है। उसने माँ के विश्वास को अनजाने में ही चूर-चूर कर दिया। अब क्या करे? उसने एक बार फिर रोहित को फोन करके सूचित किया कि अब उसकी माँ घर वापिस लौट आई हैं। वो, कम से कम एक बार उसके घर में आकर उसकी माँ से तो मिल कर बातचीत करके उसे आश्वस्त कर जाए। शेष बातें बाद में तय कर ली जाएँगी परन्तु रोहित ने तुरन्त अपनी व्यस्तता का बहाना बना कर अपना पीछा छुड़ा लिया। रोहित विदेश चला गया। जाने से पहले उसने एक बार नीता और उसकी माँ से मिलने की मिलने की ज़रूरत भी नहीं समझी। 

— क्रमशः 

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