कोई तो जीवित है
काव्य साहित्य | कविता अभिनव शुक्ला14 Apr 2007
ठीक आधी रात में,
कुत्तों के भौंकने की आवाज़,
जब कानों तक आती है,
तब अकारण ही,
मन प्रसन्न हो उठता है,
चलो कोई तो है,
जो इन मृतप्राय: मानवों की,
असंख्य शृंखलाओं के,
मध्य भी,
जीवित है।
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