क्या सोच रहे हो तुम
काव्य साहित्य | कविता मनोहर कुमार सिंह1 Apr 2021 (अंक: 178, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
क्या सोच रहे हो तुम,
सोचने से कुछ नहीं मिलेगा।
अगर कुछ पाना है तो,
कठिन परिश्रम करना ही पड़ेगा।
क्या सोच रहे हो तुम,
सोचने से कुछ नहीं मिलेगा।
अगर कुछ बनना है तो,
लगन शील बनना ही पड़ेगा।
क्या सोच रहे हो तुम,
सोचने से कुछ नहीं मिलेगा।
अगर आगे बढ़ाना है तो,
क़दम बढ़ाना ही पड़ेगा।
क्या सोच रहे हो तुम,
सोचने से कुछ नहीं मिलेगा।
अगर कुछ लेना है तो,
हाथ बढ़ाना ही पड़ेगा।
क्या सोच रहे हो तुम,
सोचने से कुछ नहीं मिलेगा।
अगर जगना है तो,
बिस्तर छोड़ना ही पड़ेगा।
क्या सोच रहे हो तुम,
सोचने से कुछ नहीं मिलेगा।
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