क्यों अख़बार हुए सफल? जबकि ढेर लगा है चैनलों का!
आलेख | सामाजिक आलेख डॉ. सुनीता श्रीवास्तव1 May 2024 (अंक: 252, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
(‘प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ विशेष)
आज बेटे का जन्मदिन हैं। सुबह-सुबह उसे अख़बार पढ़ते देख, याद आया की आज तो 3 मई है! यानी विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस, उसके हाथों में अख़बार देख मन ही मन में सोचने लगी, “हम 21वीं शताब्दी में जी रहे हैं, हमारे पास मोबाइल, टीवी जैसे कई आधुनिक यंत्र हैं। पर फिर आज के आधुनिक युवा या फिर ओल्ड फ़ैशन बुज़ुर्ग, यह सभी अख़बार पढ़ना क्यों पसंद करते हैं? जबकि ढेर लगा हुआ है न्यूज़ चैनलों का!”
यह तो सच है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में काफ़ी प्रभाव डाला हैं, किन्तु आज के समय में भी अख़बारों द्वारा अच्छा व्यापार चलाया जा रहा है। यदि इतिहास पर ग़ौर करें तो अख़बारों का सिलसिला सिर्फ़ 16वीं शताब्दी के अंत में यूरोप में शुरू हुआ था और वहीं 18वीं शताब्दी में भारत में ‘बंगाल गैजेट’ के आते इस लघु महाद्वीप में समाचार पत्रों के सिलसिले का शुभारंभ हुआ। इसी के बाद संपूर्ण विश्व से, 20वीं शताब्दी के आते ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से परिचय हुआ। जोकि काफ़ी सफल हुआ पर शायद समाचार पत्रों जितना नहीं।
पर मुद्दे पर आते हैं कि क्यों अख़बार ज़्यादा सफल हुए? ख़ासकर हिंदी अख़बार?
इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे अख़बार हमें विभिन्न पहलुओं के सम्बन्ध में जानकारी प्रदान करते हैं। अख़बारों की ख़ासियत यह है कि इन्हें हम शान्ति से पढ़ सकते हैं, बिना बहस के, अख़बारों की एक अच्छी बात हैं, कि इसमें डिबेट के तौर पर संवाद (डायलॉग) तो डाला जा सकता हैं, पर कभी चैनलों की तरह मिर्च मसाले जैसी भड़काऊ बहस नहीं, जोकि अख़बारों की एक ख़ासियत के साथ-साथ ख़ामी भी कही जा सकती हैं। क्योंकि आज-कल कई वर्गों को बहस या तमाशा देख कर आनंद मिलता है। और वहीं किसी को शांत माहौल भाता हैं।
दरअसल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का उपयोग सभी वर्ग के लोग ठीक से नहीं कर पाते। उसी के विपरीत एक समाचार पत्र को कोई भी आराम से बेहद ही कम दाम में ख़रीद कर पढ़ सकता है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के उपयोग करने हेतु हमें या तो किसी मोबाइल फोन या फिर कोई टीवी, लैपटॉप नहीं तो टेबलेट/आईपैड की अवश्यता होती है, जोकि बेहद ख़र्चीले होते हैं। अधिकतम बुज़ुर्ग वर्ग इन उपकरणों को इस्तेमाल करने में अक्षम पाए जाते हैं। जिसके कारण अख़बारों का प्रयोग बरक़रार है।
हम किसी भी समाचार पत्र को देख लें, हम उसमें साहित्य, कला, सिटी, क्राइम, राजनैतिक, पुरस्कार, खेल, शिक्षा, कहानी इंफ़्रास्ट्रक्चर इत्यादि . . . जैसे अनेक विषयों के बारे में पढ़ सकते हैं। लेकिन चैनलों पर सिर्फ़ प्राइम टाइम शो, डिबेट्स, इंटरव्यू या फिर बुलेटिन ही चलते रहते हैं। जिससे न्यूज़ चैनलों के कंटेंट की विविधता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। किन्तु चैनल तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का सिर्फ़ एक अंग हैं, यदि संपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की बात करें तो फिर यह बात थोड़ी फीकी पड़ जाती है। एक और बात टीवी, मोबाइल . . . जैसे आधुनिक गेजेट्स पर समाचार पढ़ते या देखते वक़्त उपकरण में से निकलती हुई ख़तरनाक रेडियो वेव्स हमारे स्वास्थ्य (नेत्र स्वास्थ्य) पर बुरा प्रभाव डालती हैं। पर अख़बारों में यह सम्भव नहीं है। जिसके कारण अधिकतम अभिभावक अपने शिशु को समाचार से अवगत करने के लिए अख़बार पढ़ने की सिफ़ारिश करते हैं। इनकी एक और ख़ासियत हैं कि यह सभी वर्गों और क्षेत्रों से सम्बन्धित विषयों की जानकारी देते हैं, यानी ज़्यादा पाठकों का आकर्षण।
यदि संक्षेप में बताएँ तो अख़बारों का जीवन्त रहना उनकी विविधता, साहित्यिक मूल्य, और समर्थनीयता के कारण हो सकता है। इनका बेहद सस्ता होना और विस्तृत विषय सूची ने उन्हें आज भी लोकप्रिय बनाए रखा है। इसके अलावा, अख़बारों का अवलोकन और अध्ययन व्यापार, शिक्षा, और अन्य क्षेत्रों में व्यक्तिगत और व्यावसायिक उपयोग के लिए महत्त्वपूर्ण है।
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