दिल से अमीर
कथा साहित्य | लघुकथा डॉ. सुनीता श्रीवास्तव15 May 2024 (अंक: 253, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
आज फिर वह 11 वर्षीय कालू मेरे पास आकर खड़ा हो गया, बोला, “मैम प्लीज़ कोई काम बता दो, जो बोलो वो कर दूँगा . . .”
एक बार उसे देखा, और कहा, “आज कोई काम नहीं है। चले जाओ।”
वह हमेशा की तरह ज़िद करने लगा, “मैम कुछ भी करा लीजिए, छोटी बहन को जन्मदिन की गिफ़्ट देनी है।”
और आशा भरी नज़र से कालू मुझे देखने लगा . . . पास में ही उसके गंदे-फटे क़मीज़ में उसकी 3 वर्षीय भूखी-प्यासी, नन्ही बहन कपड़ों से लिपटी थी। उसकी प्यारी आँखें देख मुस्कुराहट बढ़ गई, पर मन ही मन उदासी छा गई। वह बच्चा भीख नहीं माँगता, न चोरी करता है, सिर्फ़ काम चाहता है। बरबस ही मैंने कहा, “अच्छा यह घास बढ़ गई, यह काट दो ज़रा।”
मन में बेहद कठोर दुख की भावनाओं के साथ-साथ उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान झलकी, उसने फटाफट घास काट कर मुझे देखा, उसे जब पैसे दिए तो फट से दौड़कर पास की दुकान की और भाग गया!
मैं उत्सुकता से उसके पीछे-पीछे गई, तो देखा कालू ने दुकानदार से केक के लिए कहा, पर रुपए कम होने से वह निराशा से अपनी जेब टटोलने लगा . . . मैंने इशारे से दुकानदार को केक देने का इशारा किया . . . और बाद में पैसे भी दे दिए।
वह केक लेकर, फ़ुर्ती से कालू ने अपनी बहन को दिया। दोनों भाई-बहन एक-दूसरे को देख रहे थे, उनकी ख़ुशी को शब्दों में नहीं बयाँ किया जा सकता, कितना अमीर है न कालू . . .!
मानो वह नन्ही-सी बहन अपने अमीर भाई को देख गर्व से भर उठी . . .
यह सब तमाशा हमारे पड़ोसी भी देख रहे थे, बोले, “बोले बच्चों से कार्य कराना . . . क़ानूनी अपराध है . . . हम अक्सर देख रहे हैं, आप अक्सर उससे कुछ तो भी कराती रहती हैं! यदि यह जारी रहा तो सामने वाले मिट्ठू सेठ का लड़का हाल ही में आईपीएस बना हैं।”
मैं समझ रही थी उनका मतलब, मैंने कहा, “आप सही हो, पर कभी-कभी नियम-क़ायदे सब तोड़ने की इच्छा होती है, आपने देखा नहीं उन दिल से अमीर श्रमिक बच्चों का स्वाभिमान, उनकी मेहनत, उनकी लाचारी को देख . . . नियम तोड़ना अनुचित नहीं है . . .। हाँ, पर यह नियम ज़रूरत होने पर मैं आगे भी तोड़ूँगी . . . और सज़ा भुगतने के लिए राज़ी हूँ।”
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