अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

लल्ला अल्ला की मरजी

(अवधी कविता)

 

लल्ला अल्ला की देन हवै,
यह सुनि मति चकराइ गयी।
जोरू तौ बनिगै एक मशीन,
वह पैरा जइस झुराइ गयी।।
 
मनई कै बहुत कमाई ना,
मुलु साँझै का ठर्ररा ढारि लेइ।
साथइ लावा जो बिरयानी,
ओहू अपने पेटे मा डारि लेइ।
ज्यों अंकवारी लिए जोरू का,
फिरि सारी बत्ती बुझाइ गयी॥ लल्ला अल्ला . . .
 
कबहूँ मुरगा या बड़े-छोट,
कबहूँ अंड़न का लाइ रहा।
जब चढै़ सुरसुरी मूंड़े पर,
जोरू संग बीन बजाइ रहा।
पहिले ते बेटवा रहइ टेंटे,
अब अगिले कै बारी आइ गयी॥ लल्ला अल्ला . . .
 
वह पहुँची डफरिन अस्पताल,
अगली उम्मीद देखावइ का।
गोहराय कहिस कोउ खिड़की ते,
नामुइ तौ बोल लिखावइ का।
जन्नत हाथइ मा पकरे परचा,
मुलु आँखिन अँधियारी छाइ गयी॥ लल्ला अल्ला . . .
 
डाक्टर बोली देखतइ फौरन,
खून कमै तन बहुतइ है।
तुम काहे चाहौ अब बेबी का,
लरिका तुमरे तौ बहुतइ है।
डाक्टर ते बोली वह तुरतै,
मरजी अल्ला की सुझाइ गयी॥ लल्ला अल्ला . . .
 
डाक्टर खर्ररा लिखि दीन्हिस,
मुल यहिका मतलब कुछ नाहीं।
शेखू अउतइ मदमस्त होइ,
वहिकी हालति का पूँछै नाहीं।
अंधैरु भवा जब कमरा मा,
फिरि तन कै प्यास बुझाइ गयी॥ लल्ला अल्ला . . .
 
एकु टेंटे पर एकु पेटे भीतर,
पंगति लरिकन कै बहुतै है।
भूरे, छोटू, दूबरि, अट्टन, पट्टन,
सब एकै तसला मा खउतै है।
पांच रुपल्ली दूध के पाकेट का,
आजु बिटेवा रिरिआइ गयी॥ लल्ला अल्ला . . .
 
जस तस बीते हैं नौ महिना,
अब संउरि कै बारी आयी है।
शेखू अब पीटति हैं कपार,
रुपयन कै लाचारी छायी है।
अब ठांढि मुसीबत बनि पहाडु,
दिनहे मा नखत देखाइ गयी॥ लल्ला अल्ला . . .
 
आँखी घुसिगंइ अब गड्ढा मा,
तन हरदी अस पिअर भवा।
लरिका अब चूँसै सूखी छाती,
मुश्किल लागति जिअब भवा।
जन्नत तौ बनिगै अब दोजक,
मरजी अब माथे सजाइ गयी॥ लल्ला अल्ला . . .

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

अतिथि
|

महीने की थी अन्तिम तिथि,  घर में आए…

अथ स्वरुचिभोज प्लेट व्यथा
|

सलाद, दही बड़े, रसगुल्ले, जलेबी, पकौड़े, रायता,…

अनंत से लॉकडाउन तक
|

क्या लॉकडाउन के वक़्त के क़ायदे बताऊँ मैं? …

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

गीत-नवगीत

कविता

हास्य-व्यंग्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं