बाला
काव्य साहित्य | कविता राजेश शुक्ला ‘छंदक’1 Sep 2022 (अंक: 212, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
(अवधी कविता)
लट छूटि गिरी ज्यों बूँद लुढ़कि,
वह गालन का अब चूमि रही है।
कुछ बूँद फँसी जो बारन बिच,
पुरवा संग वह सब झूमि रही हैं।
यहु बैरी पुनर्वसु बरसै झम-झम,
बूँदन संग धरा यह झूमि रही है।
यहु है कस विधना कइ मरजी,
इक बाला करकट मां घूमि रही है॥
कपड़ा भीगि कै तन से चिपके,
वह जबरन उनका सुधारि रही है।
करिया कीचड़ मा दूनौ हाथ सने,
वह वैसेइ बारन कै सँवारि रही है।
इक हाथ मा पन्नी कै गठरी पकरे,
पर चुनरी सुधारि रही है।
दोजनु कोउ कमल कीचड़ उपजै,
यहि तन पर सुंदरता वारि रही है॥
मन अब हिरनी जैसे कुलाँच भरै,
वह सड़कै पर देखौ आइ गयी है।
झपकति पलकै की बेरिया बिच,
एक चमचम कारै ते छुआइ गयी है।
वह चौंकि कै बोनट पर आइ झुकी,
कीचड़ ते वह गाड़ी करिआइ गयी है।
फिर तुरतै चीं..चीं करिकै कार रुकी,
झट बहिरै एक बाला आइ गयी है॥
वह लागति मानौ ज्वाला, चण्ड़ी,
दूनौ नयन अगिनि बरसावति है।
छिटकाये बार काली रूप दिखै,
मुँह ते गारिन कै बान चलावति है।
वह भूखी बाघिन अस झपटि परी,
वहिका टेंटुआ तुरत दबावति है।
यहु देखतइ बहुतै मनई जुटिगे,
ना ना कहिकै कुछ चिल्लावति हैं॥
मुश्किल ते टेंटुआ छोड़ि दिहिस,
मुल वहि पर कालिका सवारी है।
वहि बाला का ठोंकइ खातिर,
एक चप्पल पाँवन ते उतारी है।
दुइ-चारि कसिसि फिर पीठी पर,
वहिकी गरीबी कै अर्थी निकारी है।
यह पागल हाथी अस चिंघरै,
सबु गन्ना गर्द करइ की तयारी है॥
पकरिस कोउ हाथै का उपरै,
फिरि झिटका दीन करारा है।
चप्पल गिरिगा अब सड़कै पर,
हाथे पर आपन हाथुइ मारा है।
वह खिसियानी बिल्ली मुड़िकै,
मोबाइल परसै ते निकारा है।
जो बिथरी पन्नी हैं सड़कै पर,
कुछ जन मिलिकै सबै बहारा है॥
भइया फ़िरि अब तौ वहु जवान,
कारै वाली बाला का झाड़ि रहा।
तुम पीटौ जांघै सब जनन बीच,
उनकी लपटंटी सबै उखाड़ि रहा।
वह अबे-तबे कहि झिटकै देही,
यहु अनकढ़ घोड़ी कै काढ़ि रहा।
उइ चिंघरे चिल्लाये हलकान भयीं,
वहि पर यहु लागति बाढ़ि रहा॥
फिरि पकरि उठावा वहि बाला का,
हाथुइ वहिके मूड़े पर फेरि दिहिस।
कुछ रुपया औ गठरी वहिका दइ,
मुड़िकै कारै वाली ते बात कहिस।
तुम बहि नामै की हौ पढ़ी-लिखी,
संस्कार विधाता सब छीनि लिहिस।
तुम बद ज़बान औ बेशरम दिखौ,
कौन मात-पिता है जन्म दिहिस॥
तुम से तौ सुघरि यहइ लरिकी,
इज्जति संभारि कै चलति हवै।
अपनी निर्धनता संग खुश रहि,
लछिमन रेखा भीतर रहति हवै।
तुम बिगड़ी औलादि हौ बापै कै,
वहिकी बानगी यह दिखति हवै।
माँ-बाप न तुम पर गौर किहिस,
यहु तुम का देखे ते दिखति है॥
अब हाथ जोरि कै माँगौ माफी,
यह तुमरी करतूतै माफ करी।
जो मंगिहौ ना तुम अब माफी,
फिर थाने मां पुलिसै साफ करी।
वहिका घमंड सब चूर-चूर भवा,
पुलिसै का नामै जब कान परी।
हाथ जोरिकै बाला ते वह बोली,
अब हमरी गलतिन कै माफ करी॥
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