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माँ गंगा

उच्च हिमालय की श्रेणी से,
बहती आई कल कल कर
श्वेत चाँदनी ज्यूँ हिम सी,
हुई प्रवाहित इस भू पर॥

पाहन प्रस्तर के दुर्गम पथ पर,
कठिनाई हुई अति मगर
हिम शैल सुता होने के कारण,
झेला सबको हँस हँस कर॥

हिम राज ने जग को दी है भेंट,
प्रिय पावन नद ज्यूँ स्वर्णहार
या द्रवित हुई प्रगटी हो तुम,
सुनकर जलते कण की पुकार॥

या विरह वेदना हो नग की,
बह चली जो पावन अश्रुधार
विरह व्यथा में पिघल-पिघल कर,
करती जन-जन का उद्धार॥

मुझको अपना परिचय दो,
हे महानदी सौम्य सुकुमार
मेरे कोटि कोटि प्रणाम,
माँ गंगा करो स्वीकार॥

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