मैं और तुम
काव्य साहित्य | कविता लिली मित्रा1 Jun 2023 (अंक: 230, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
नीलाभ का
विस्तृत विस्तार
और तुम . . .
जुग सहस्र योजन पर
दमकता सूर्य
और तुम . . .
अदृश्य
प्रवाहित मंद,
कभी प्रचंड बयार
और तुम . . .
चंद्र की षोड़शी
कलाओं से निखरता
रात्रि का ललाट
और तुम . . .
नित्य घटित
खगोलीय अलौकिकताएँ
और तुम . . .
करना होगा आत्म का विकास
तब होंगे एकसार
मैं . . . और . . . तुम . . .।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं