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मन गिलहरी


प्रीत हरीतिमा लिए
अनोखी
साजन तुम्हरे मन की
गलियाँ . . .। 
नरम घास का बिछा
ग़लीचा
स्नेह भरित जूही की
कलियाँ . . .
 
साजन तुम्हरे मन की
गलियाँ . . .। 
 
बना गिलहरी सा
मन मेरा . . .
फुदक रहा हर डाल
पात पर . . . 
अधिकार समझ मैं
फिरूँ निडर सी
बैठ शाख़ पर तोड़ूँ
फलियाँ . . .
 
साजन तुम्हरे मन की
गलियाँ . . .। 
 
क्या तुमने सहलाया
मुझको . . .? 
पीठ पे उभरी स्पर्श
धारियाँ . . . 
गझिन पूछ लहराकर
भागूँ, 
लचक गई हैं लाज से
डलियाँ . . . 
 
साजन तुम्हरे मन की
गलियाँ . . .। 
 
प्रेम तुम्हारा पाकर
प्रीतम, 
चपल भईं मेरी स्वर-
ध्वनियाँ . . . 
दिखने में मैं लगती
भोली . . . 
तुम संग जागी मन की
रंग-रलियाँ . . . 
 
साजन तुम्हरे मन की
गलियाँ . . .। 

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