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मातृभूमि! तुझ पर  जीवन  निस्सार  करूँ

दीर्घ   उम्र   की   चाह      नहीं 
मिट  जाऊँ  तो  परवाह   नहीं, 
कर  सकूँ  अगर  क़ुर्बानी    मैं 
दूँ  अपनी  सकल  जवानी  मैं, 
मैं   पहले चिता   जला   जाऊँ 
ज्वाला के  बीच  चला   जाऊँ। 
मर -मिटने का जीवन में एक त्योहार  करूँ। 
                  तुझ पर  जीवन निस्सार  करूँ। 
 
पथ  सजे  अगर  अंगारों    से 
दुश्मन  की  तीव्र  कटारों    से, 
फुफकारे पथ में  जो  विषधर 
फट  जाने  को  उद्धत   अम्बर, 
पग  मेरा  कभी  नहीं   रुकता                    
सर  व्यर्थ  नहीं  मेरा  झुकता। 
हर तूफ़ां से लड़  नौका  सागर  पार  करूँ 
              तुझ पर  जीवन  निस्सार  करूँ। 
 
पाषाण  बदन  को   बनने    दे
काँटों   का  ताज   पहनने    दे, 
इस  मिट्टी को  तन  दान  करूँ
तू  कहे  अगर  विषपान   करूँ, 
मैं जलूँ  तिमिर जल  जाने  को 
दुस्सह निशीथ  ढल  जाने  को। 
भर ज्ञान, गर्व, आलोक  तेरा  उद्धार  करूँ 
                 तुझ पर  जीवन निस्सार  करूँ। 
 
जीवन  का  अंत   मरण    होता 
यह   पंचतत्व   का   तन   होता, 
पावक, क्षिति,जल का मेल हुआ 
अम्बर , वायु   का   खेल   हुआ, 
इनमें   ही  पुनः   बिखर   जाना
दो - पल जीकर फिर मर  जाना। 
मैं तरल-ज्वाल का  दरिया  डूबूँ , पार  करूँ।
                तुझ पर  जीवन  निस्सार  करूँ। 

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