मेरे अन्दर का शून्य शिव भी है और ब्रह्म भी
काव्य साहित्य | कविता डॉ. नेत्रपाल मलिक15 Sep 2023 (अंक: 237, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
मैं बाहर निकल आना चाहता हूँ
गणनाओं के समीकरणों से
जिनमें
लम्ब सदा परिणाम पाता है
आधार का धरातल खो जाने पर भी,
परिधि केन्द्र की धुरि से बँधकर नहीं
समीकरणों के गुणनफल के अनुसार आकर बदलती है
शून्य का गुणनफल बलहीन कर जाता है
लम्ब को
और
तिरोहित कर परिधि की सीमा को
दे जाता है अनन्त विस्तार केन्द्र को
मेरे अन्दर का शून्य
शिव भी है और ब्रह्म भी
शून्य
भस्म भी करता है
और
दे देता है अनन्त विस्तार भी।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं