कुछ परछाइयाँ आदमी होती हैं
काव्य साहित्य | कविता डॉ. नेत्रपाल मलिक15 Sep 2023 (अंक: 237, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
साथ-साथ चलती परछाईंं
देती है एक संगी का अहसास
वो सींचती है हमारे अस्तित्वबोध को
हमारे दिवास्वप्न में
उसकी आँखें नापती हैं चुपचाप
हमारे पीछे के सूरज की गति
और वो बदलती जाती है आकार
उसका धैर्य प्रतीक्षा करता है
सूरज के सो जाने की
तब परछाईंं
जश्न मानती है रातभर
हमारे अस्तित्व पर विजय का।
कुछ परछाइयाँ आदमी होती हैं
चलती हैं हमारे साथ-साथ
सूरज के सो जाने की प्रतीक्षा में . . .
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