मेरी ग़ज़ल
काव्य साहित्य | कविता अजय कुमार ‘अजेय’19 Mar 2018
भाषा में बंधन रखूँ तो,
ग़ज़ल मेरी क्रंदन करती है
झूठी उपमाएं लिखूँ तो,
ग़ज़ल मेरी अनबन करती है
सच्ची फक्कड़ बात लिखूँ तो,
बेहद अपनापन करती है
तोड़-मरोड़ के कुछ लिखूँ तो,
मुझको ही दुश्मन करती है
लिखूँ सादगी से गर कुछ भी तो,
ख़ुद को अर्पण करती है
झूठा कोई ज़ेवर ला दूँ तो,
चूर-चूर दर्पण करती है
प्रेम मेरी ग़ज़ल का सच से,
सात्विक भोजन करती है
ग़ज़ल मेरी सब 'मंसूरों' का,
दिल से अभिनंदन करती है
न तुम मुझे भुलाना यारो,
मैं भी तुम्हे नहीं भूलूँगा
याद तुम्हारी आज भी मन पर,
एकछत्र शासन करती है
चलो 'अजेय' कुछ और लिखेंगे,
कड़ुवा–ख़ारा-तीखा-मीठा
रात बजे दो, ग़ज़ल मेरी अब,
आज समापन करती है।
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