मिट्टी के चूल्हे
काव्य साहित्य | कविता डॉ. सुषमा देवी1 Aug 2024 (अंक: 258, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
मिट्टी के चूल्हों पर प्यार तभी तक पकता था
मन से मन का नाता तभी तक जुड़ता था
जब
गहराई प्रेम की न नापी जाती थी
निःस्वार्थ प्रीत की जलती रहती बाती थी
अदहन जब दाल की बटलोई में खदकता था
अहरे पर रख कर भात भी बगल में पकता था
कोई तरकारी मिलकर काटी जाती थी
फिर उसमें प्यार का तड़का थोड़ा लगता था
तावे पर बरसाती पानी के छीटें पड़ते थे
रोटी पर चिट्टे संग छीटें भी सजते थे
सब मिल कर भोजन का आनंद उठाते थे
बातों की छोर न कोई पाते थे
गुड़ की भेली भी सबको अंत में मिलती थी
जीवन की मिठास सभी में घुलती थी।
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