अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी रेखाचित्र बच्चों के मुख से बड़ों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

मोहब्बत क्या है

 

ये काली आँखें
ये काले बाल
ये सुर्ख़ लाल लब
और ये गेहुँआ रंग
तुझमें कुछ ऐसे ये जँचता है
 
जैसे बरसात के बाद सूरज लगता है
जैसे ख़ुदा की मेहर सी
जैसे किसी दुश्मन के क़हर सी
जैसे सर्द मौसम में सुबह की सहर सी
जैसे दिवाली की रात हो
जैसे मेहँदी वाले हाथ हों
जैसे चाँदनी रात हो
जैसे तुझ संग नदी किनारे बैठे हो
 
लगता है जैसे मैं धरा हूँ और
मुझ में मीलों बहुत दूर तक
बेझिझक सी बे-धड़क सी
मौसम की बदमाशियों से बेपरवाह सी
मुझमें रहती एक नहर सी हो
 
मैं तुझको देखता रहता हूँ
अकेले भी संग तुझे पाता हूँ
वक़्त बे-वक़्त तुझसे कहता रहता हूँ
बदन के नक़्शे पर क़सीदे पढ़ता रहता हूँ
फूल ख़ुशबू माँगता है तुझसे
पानी ने चमकना सीखा है तुझसे
लगता है ये सृष्टि बस तुझसे ही है
तुझसे बस इतना कह पाता हूँ
सब लगता तुझ सा ही है
 
धरा और अंबर के बीच जितनी जगह है
बस एक चीज़ है जस की तस है
वो मोहब्बत जो तुझसे होती है
मोहब्बत जो तुझसे शुरू तुझ पर ही ख़त्म

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं