मुट्ठी भर धूप
काव्य साहित्य | कविता यास्मीन फ़रहत शाह1 Feb 2023 (अंक: 222, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
मेंरे हिस्से की
ये मुट्ठी भर धूप
जन्म समय से अंतिम पल तक
मैं जिसे खोजती रही हूँ
ख़ुशियों के दामन
से छीन कर
ग़म के काले अँधेरे में
गिरवी पड़ी है
मेरे हिस्से की
मुट्ठी भर धूप
समझौते के नाम पर
और कहीं मेरे ही अंजाम तक
देखो भरी पड़ी है
मेरे हिस्से की ये
मुट्ठी भर धूप
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