नदी की लहरें
काव्य साहित्य | कविता सूरज दास15 May 2022 (अंक: 205, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
नदी जब बहती है
अपनी धुन में, मैं
महसूस करता हूँ
उसे अपने मौन में।
शायद कहना कुछ
चाहती है मुझसे,
कि ए पागल क्यूँ घूमता
है तू मेरे इस आँगन में।
मैं हमेशा कि तरह
यही कहता हूँ,
मुझे अति प्रिय है घूमना तेरे
इस किनारों के आँगन में।
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