नेताजी-नेताजी
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता अमर परमार9 Apr 2017
नेताजी करत करत ज़बान सूख गई हमारी।
फिर भी न ईने ध्यान धरो
जी के लिए ज़िंदगी गुज़र गई हमारी।
इधर से उधर, उधर से इधर
इनके काम में रत रहे, ज़िंदगी भर।
फिर भी हमको फायदा न मिला
इनके नेता होने का, रत्ती भर।
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