मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता हूँ
काव्य साहित्य | कविता अमर परमार12 Apr 2017
आधी सी उम्र अपनी झोंक दी है
महिला उत्थान में मैंने
सभाओं में जाता हूँ
विचार-विमर्श करता हूँ,
समाज में, समाज के लोगों से
कि क्या अहमियत है नारी की
समाज में, धरती पर
कि क्यों ज़रूरी है
एक बिटिया परिवार में
बोलता हूँ, मंचों से नारी के बारे में।
माइक लगाकर भी चीखता हूँ
कि कहीं तो समझ आएगी लोगों को
जो करवाते हैं लिंग जाँच
फिर करवाते हैं गर्भपात
जाता हूँ बैठकों में महिला मण्डल की भी
समझता हूँ परेशानियाँ एवं समस्याएँ
जगत-जननियों की
फिर मिलकर कोशिश करता हूँ
इनका समाधान ढूँढने की
दिल से चाह है मेरी कि
सम्मान मिले हर नारी को
न पाये वो कभी अपेक्षित स्वयं को
मेरी स्वयं भी तो चार बेटियाँ हैं
हाँ! चार लड़कियाँ
बहुत होती हैं चार लड़कियाँ
लगता है कितना बोझ सा है मुझ पर
इनकी शादी वग़ैरह का
कितनी सारी जिम्मेदारियाँ होती हैं
काश! कि मेरा एक लड़का होता
मेरा वारिस होता।
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