एक ज्वार
काव्य साहित्य | कविता अमर परमार12 Apr 2017
ख़ून तो मेरा भी उबल रहा है
कइयों की तरह
ग़ुस्सा भी आता है
विचार आते हैं एक से एक क्रांतिकारी
सोचता हूँ कि अब उठना होगा युवाओं को
तब ही निकलेगा हल, तमाम समस्याओं का
शायद शुरूआत करनी होगी मुझे ही
नेतृत्व करना होगा, एक नई क्रांति का
जो कर सकेगा व्यवस्था परिवर्तन
हाँ! युवाओं में है वो जोश, वो शक्ति
सो मुझमें भी
लग रहा है कि छोड़ दूँ सबकुछ
और उतर जाऊँ रणक्षेत्र में
आख़िर यह मेरा भी तो देश है
कई लोग, महापुरुष खड़े हुए थे,
इस देश के लिए, समाज के लिए
अपना सर्वस्व अर्पण कर
प्रेरणा देते हैं ऐसे लोग, मुझे
कि मैं भी कुछ कर जाऊँ
देश हित में
कर्ज़ चुका दूँ मातृभूमि का
बस एक बार थोड़े से पैसे आ जाने दो
कमा लेने दो
फिर देखना।
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