मेला है भाई मेला है
काव्य साहित्य | कविता अमर परमार9 Apr 2017
मेला है भाई मेला है
हलवाई की दुकान से उठती मिठाई की सुगंध
घर-बाहर की चीजों के भी कई रंग
चाट-पकौड़ी और बर्फ के गोलों के संग
खेल खिलौनों से भरा रंगीन ठेला है
मेला है भाई मेला है
तमाशों से भरा बाज़ीगर का झोला है
बन्दरिया के करतबों से सजा मदारी भोला है
झूलों-चकरियों के संग झूलता-झूमता
जनता का रेला है
मेला है भाई मेला है।
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