पैर बहुत जलने लगे . . .
काव्य साहित्य | कविता वीरेन्द्र कुमार कौशल1 Jun 2022 (अंक: 206, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
वह भी बचपन का
क्या अनमोल समय रहा
जब देखते ही देखते
एक ही साँस में
बिना किसी
कारण या वज़ह ही
तपती सिखर दोपहरी में
पूरी की पूरी अपनी गली
पड़ोस का मोहल्ला
बिना किसी झिझक के
बिना जूते चप्पल के
नाप आया करते
लेकिन जब से
डिग्री की समझ आई
तब से तो
जूते चप्पल में भी
पैर बहुत जलने लगे
पैर बहुत जलने लगे . . .
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