पैसे का ग्रुप तलाश भाई
काव्य साहित्य | कविता रावत गर्ग उण्डू15 Nov 2019
मानव जब जन्म लेता है,
तब उसका वज़न ढाई किलो होता है।
अंतिम अग्नि संस्कार के बाद
उसकी राख का वज़न भी
ढाई किलो होता है।
ज़िन्दगी का पहला कपड़ा
जिसके भी जेब नहीं होती है।
ज़िन्दगी का अंतिम कपड़ा कफ़न
उसमें भी जेब नहीं होती है।
तो बीच के समय की
जेब के लिए इतने झंझट क्यों?
फिर इतना दग़ा और कपट क्यों मेरे भाई?
रक्त लेने से पहले
ग्रुप की जाँच की जाती है।
पैसा लेने से पहले भी जाँच लें,
यह किस ग्रुप का है?
यह... न्याय का है?
हाय का है? या हराम का है?
ग़लत ग्रुप का पैसा
घर में आ जाने से ही,
घर में अशांति, क्लेश,
और फ़साद होता है ।
हाय और हराम का पैसा
जिमखाना, दवाखाना,
आदि में पूरा हो जाएगा।
ज़रा सोचिए!
यह पैसा आपको भी ख़त्म कर देगा।
बैंक बैलेंस बढ़ता है किन्तु -
परिवार बैलेंस घटता है।
तो समझना चाहिए कि
पैसा आपके लिए अनुकूल नहीं है।
मेहनत पसीने हक़ का पैसा
बरकत करता है
इससे जीवन सुखमय और सँवरता है।
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