परमात्मा तो पता नहीं पर, कण-कण रहता तू है ज़रूर
काव्य साहित्य | कविता भीष्म शर्मा15 Nov 2025 (अंक: 288, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
परमात्मा तो पता नहीं पर,
कण-कण रहता तू है ज़रूर।
मूलकणों ने सब कुछ देखा जो,
कुछ देख रहा है तू।
काम भी सारे करते हैं वो,
जो कुछ भी करता है तू॥
काम, क्रोध और लोभ, मोह,
मत्सर के जैसे सारे भाव।
सारे मूल कणों में रहते,
जैसे दिखलाता है तू॥
वो तो भवबंधन से दूर,
तुझको इसका क्यों सुरूर।
परमात्मा तो पता नहीं पर,
कण-कण रहता तू है ज़रूर॥
मूल कणों का वंशज है तू,
वे ही ब्रह्मा-प्रजापति।
उनके बिना न जन्म हो तेरा,
न ही कोई कर्म-गति॥
वे ही तेरे कर्ता-धर्ता,
वे ही हैं पालनहारी।
वे ही हैं शरणागत-वत्सल,
रक्षक, स्वामी, और पति॥
अहंकार बिल्कुल न उनमें,
पर तुझको किसका ग़ुरूर।
परमात्मा तो पता नहीं पर,
कण-कण रहता तू है ज़रूर॥
सृष्टि के आदि में बनते,
परम पिता परमात्मा से।
परमात्मा तो दिख नहीं सकते।
वे ही निकटतम आत्मा से॥
बना के मूर्ति पूजो या फिर,
ऐसे ही चिंतन करो।
सबकुछ कर भी अछूते रहते,
तुम भी ऐसा जतन करो॥
झाँका करो उन्हें भी नित पल,
रहो न दुनिया में मग़ुरूर॥
परमात्मा तो पता नहीं पर,
कण-कण रहता तू है ज़रूर॥
योग से ऐसा चिंतन होता,
सुलभ किसी से छिपा नहीं।
कर्म ही है आधार योग का,
वाक्य कहाँ ये लिपा नहीं॥
क्वांटम दर्शन निर्मित कर लो,
अपने या जग हित ख़ातिर।
चमत्कार देखो फिर कैसे,
हार के मन झुकता शातिर॥
मेरा दर्शन न सही पर,
अपना तो गढ़ लो हुज़ूर।
परमात्मा तो पता नहीं पर,
कण-कण रहता तू है ज़रूर॥
डॉक्टर हो या हो इंजिनीयर,
नियम समान ही रहते हैं।
अच्छे चिंतन बिना अधूरे,
काम हमेशा रहते हैं॥
कर्म से स्वर्ग तो मिल सकता है,
मुक्ति बिना न चिंतन के॥
यूनिवर्सटी शिक्षा दे सकती।
ज्ञान बिना न संतन के॥
उसके आगे सब समान हैं,
गडकरी हो या हो थरूर।
परमात्मा तो पता नहीं पर,
कण-कण रहता तू है ज़रूर।
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