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प्रेम बहती हुई नदी है


व्यक्तिगत जीवन की अंतरंग झाँकी अलबर्ट आइन्सटाइन

न्यूयॉर्क में २५ नवम्बर, १९९६ को आइन्सटाइन के पत्रों की नीलामी हुई, जिससे ९००,००० डॉलर्स की धनराशि प्राप्त हुई। पत्रों का यह संग्रह "आइन्सटाइन करेस्पांडेस ट्रस्ट" के अधिकार में था जो सन् १९७६ में बर्कले शहर के एक बैंक के सेफ़ से प्राप्त हुआ था। आइन्सटाइन के उत्तराधिकारियों के आपसी झगड़े के कारण महान वैज्ञानिक के पत्रों को नीलाम करने की स्थिति आयी। बर्कले (कैलिफ़ोर्निया) से प्राप्त, ये चार सौ पत्र इस विश्व वैज्ञानिक के अंतरंग जीवन के रहस्यों का उद्घाटन भी करते हैं।

अल्बर्ट आइन्सटाइन का एक पत्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं प्रसिद्ध है- जिसने आधुनिक युग को प्रभावित किया है तथा विश्व के कई देशों का भाग्य निर्णायक भी प्रतीत हुआ। नोबेल पुरस्कार विजेता आइन्सटाइन ने यह पत्र सन् १९३९ में यानी द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारंभ में अमरीका के राष्ट्रपति फ़्रैंकलिन डी. रूज़वेल्ट को लिखा था। इस पत्र में उन्होंने नाज़ियों के "न्यूक्लियर" सामर्थ्य की सम्भावना का बोध कराते हुए चेतावनी दी थी। उसी से "मैनहट्टन की योजना" बनी और बाद में "अणु बम" का विकास हुआ।

उनके अन्य पत्रों में इस महान वैज्ञानिक का सर्वथा भिन्न व्यक्तित्व भी उभरकर सामने आया है। अधिकांश पत्र जर्मन भाषा में हैं। इन पत्रों में कुछ उसके पांडित्य का प्रमाण हैं, कुछ पत्र प्रेम की रसिकता से ओतप्रोत हैं, जो कुछ प्रथम विवाह के कटुतापूर्ण दुःखद निर्णय को उजागर करते हैं। इन पत्रों से यह स्पष्ट हो जाता है कि वह केवल एक असाधारण प्रतिभा संपन्न मेधावी व्यक्ति ही नहीं था, अपितु उसका एक रूप सामान्य मानव-जैसा भी था, जिसने राग-द्वेष के कारण अपना पारिवारिक जीवन दुःखमय कर लिया था। उसकी पत्नी और बच्चों को उसका दुष्परिणाम भोगना पड़ा था। हिटलर के सत्ता में आने पर यहूदी होने के कारण आइन्सटाइन को जर्मनी छोड़ कर अमरीका भागना पड़ा था, जहाँ उसका शेष जीवन बीता। आइन्सटाइन का जन्म जर्मनी में हुआ। स्विट्ज़रलैंड के "ज़्यूरिख़ पॉलीटेकनिक इंस्टीट्यूट" में अध्ययन करते हुए उसका परिचय मिलेवा से हुआ। मिलेवा मैरिक सर्ब यानी बोसनिया में जन्मी थी। वह भौतिक विज्ञान की अकेली छात्रा थी और अत्यंत कुशाग्र बुद्धि की थी। आइन्सटाइन और मिलेवा का परस्पर परिचय शीघ्र घनिष्ठता में परिणित होकर प्रणय के रूप में विकसित हुआ। यह घटना आज से सौ वर्ष से भी अधिक पूर्व की है। छुट्टियों में आइन्सटाइन अपने माता-पिता के पास जब घर गया तो वहाँ से उसने मिलेवा को भेजे अपने पत्रों में लिखा: "मैं तुम्हारे बारे में सोचे बिना रह नहीं सकता। तुम्हारे पास न रहने पर मन दुःखी हो जाता है। तुम्हारे पास रह कर मैं गर्व अनुभव करता हूँ। तुम्हारा प्यार मुझे आह्लादित करता है। तुम्हारी निकटता से ख़ुशी दोगुनी हो जाती है। तुम्हारी आँखों की चमक मुझे उत्साहित करती है।" (अगस्त १९००)

मिलेवा का पत्र भी प्रेम की विह्वलता और उत्कंठा से परिपूर्ण है। एक अन्य पत्र में, जो सितम्बर १९०० का है, आइन्सटाइन ने अपने पैर की नाप का चित्र बनाकर उसे भेजा, ताकि वह उसके पैरों का मोज़ा बना सके। एक अन्य पत्र में आइन्सटाइन ने लिखा है –

"मेरी नन्ही डॉली जो मधुर गीत गाती है, मैं आत्मविभोर होकर उसी में अपना गाना मिला देता हूँ।"

पत्रों में मिलेवा उसे "प्रिय जॉनी" और आइन्सटाइन "प्रिय डॉली" नाम से मिलेवा को संभोधित करते थे। पत्रों से यह भी ज्ञात होता है कि आइन्सटाइन मिलेवा के छात्रावास में इतना अधिक समय उसके साथ व्यतीत करते थे कि उसके कमरे में रहनेवाली अन्य छात्राओं को आपत्ति होती थी। यह जानकारी भी मिलती है कि मिलेवा स्वयं आइन्सटाइन की गणित की कॉपी चेक किया करती थी। गणितीय सिद्धांतों के लिए मिलेवा उसे ठोस आधार प्रस्तुत करती थी। उसने केवल बीस वर्ष की आयु में ही फ़िजिक्स (भौतिक विज्ञान) के मान्य नियमों पर प्रश्नचिह्न लगा दिया और उन्हें अमान्य करने का साहस दिखाया था।

मिलेवा ने "विद्युत सिद्धांत" का गहराई से अध्ययन किया था। वह हेल्महोल्ज़ का ग्रंथ पढ़ चुकी थी और उसने हेर्ज़ द्वारा प्रतिपादित "विद्युत शक्ति की उत्पादकता" को भी पूरे ध्यान से पढ़ा था। इस प्रकार वह इस निर्णय पर पहुँची थी कि विद्युत शक्ति के सिद्धांत की व्याख्या अधिक सरल रीति से की जा सकती है। यह उसके पत्रों से ज्ञात होता है।

मिलेवा आयु में आइन्सटाइन से बड़ी थी। जन्मजात दोष के कारण चलने में वह कुछ लंगड़ाती भी थी। आइन्सटाइन के माता-पिता ने उससे अपने बेटे की शादी करना स्वीकार नहीं किया था। आइन्सटाइन ने लिखा था – "माँ कहती है कि वह (मिलेवा) भी तुम्हारी तरह किताब है, लेकिन तुम्हें पत्नी चाहिए। जब तक तुम ३० वर्ष के होगे, वह वृद्धा हो जाएगी।"

उसने अपनी माँ से यह बात छिपायी थी कि वे दोनों साथ-साथ भी रहने लगे हैं। इतना ही नहीं जनवरी १९०२ में मिलेवा ने अपने माता-पिता के यहाँ एक बेटी को जन्म दिया, जिसक नाम "लीजर्ल" रखा गया। फ़रवरी १९०२ के एक पत्र में आइन्सटाइन ने अपनी बेटी के प्रति ममता तो प्रगट की थी, उसके विषय में जानना भी चाहा था, किन्तु उसके पत्रों से ज्ञात होता है कि वह अपनी बेटी को देखने कभी नहीं गये। बताया जाता है किसी ने उसे गोद लेकर मिलेवा की कठिनाई दूर की थी।

जनवरी १९०३ में दोनों ने शादी की और उसके बाद उनके दो बेटे भी हुए। आइन्सटाइन उस समय अपने शोध-कार्य में संलग्न थे। मिलेवा से उसे अपने शोध कार्यों में पूरा सहयोग मिलता रहा और पति की व्यस्तता के बावजूद उसने कभी कोई अंसतोष प्रगट नहीं किया। मिलेवा दोनों बेटों को पाकर प्रसन्न थीं और उनके पालन-पोषण में ही जुटी रही। इधर आइन्सटाइन ने १९०४ में अपना शोध-प्रबंध प्रस्तुत क्या। बर्न विश्वविद्यालय (स्विट्ज़रलैंड) ने उसके शोध प्रबंध को अनावश्यक विस्तार वाला और मनगढ़ंत कह कर लौटा दिया था। निराश होकर भी उसने पराजय स्वीकार नहीं की और परिश्रम से अपना लक्ष्य प्राप्त करने में जुटा रहा। इससे उसकी दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रमाण भी मिलता है, जिसके फलस्वरूप सफलता ने उसके क़दम चूमे।

कालांतर में आइन्सटाइन की मित्रता "एल्सा लॉवेनथाल" नाम की लड़की से हो गयी थी जो बर्लिन में रहती थी। वह आइन्सटाइन की दूर रिश्ते में बहन लगती थी। प्रगाढ़ता बढ़ती गयी और वह मिलेवा से दूर होता गया। यही "एल्सा लॉवेनथाल " बाद में उसकी दूसरी पत्नी बनी थी।

अब उसकी प्रसिद्धि बढ़ने लगी थी। बर्लिन की "प्रशियन एकेडेमी ऑफ़ साइंस" में उसकी नियुक्ति हो गयी थी। उस समय तक उसके और मिलेवा के बीच की दूरियाँ अप्रत्याशित रूप से काफ़ी बढ़ गयी थीं। सन् १९१३ में एल्सा लॉवेनथाल को लिखे एक पत्र के अंश से यह स्पष्ट होता है कि आइन्सटाइन और मिलेवा का साथ रहना असंभव हो गया था। मिलेवा और उसके बच्चे उसके साथ बर्लिन में रहने के लिए तैयार थे। आइन्सटाइन ने अपनी शर्तों की लंबी सूची मिलेवा को दी कि पूरी तरह शर्तों को स्वीकार करने के बाद ही मिलेवा और उसके बच्चे आइन्सटाइन के साथ रह सकते थे, अन्यथा नहीं। यह सूची पत्र सन् १९२४ का था, क्योंकि उसी वर्ष उसने बर्लिन एकेडेमी में पद स्वीकार किया था। उसकी शर्तें इस प्रकार थीं –

अ- तुम ध्यान रखोगी १. मेरे कपड़े तथा बिस्तर आदि व्यवस्थित हैं २. मुझे नियम से प्रतिदिन तीन बार मेरे कमरे में ही भोजन पहुँचाया जा रहा है ३. मेरा शयन-कक्ष और अध्ययन-कक्ष सदा अच्छी तरह व्यवस्थित है और मेरी डेस्क मेरे अतिरिक्त कोई नहीं छूता है।

आ- तुम मेरे साथ सारे व्यक्तिगत संबंधों को त्याग दोगी। केवल कुछेक सामाजिक अवसरों पर ही तुम मेरे साथ जा सकोगी- जब आवश्यकता (विवशता) होगी। तुम इसके लिए आग्रह नहीं करोगी कि १. मैं घर में तुम्हारे साथ बैठूँ २. तुम्हारे साथ बाहर कहीं जाऊँ या यात्रा करूँ।

इ- मुझसे किसी प्रकार से भी संपर्क करते समय तुम निम्न बातों का विशेष रूप से ध्यान रखोगी – १. तुम मुझसे किसी प्रकार की आत्मीयता या स्नेह की आशा नहीं करोगी तथा इसके लिए मेरी आलोचना या निन्दा नहीं करोगी। २. जब भी मैं तुमसे कुछ पूछूँगा, तुम तुरंत उत्तर दोगी। ३. जब भी मैं तुमसे जाने को कहूँगा, तुम तुरंत मेरा सोने या पढ़ने का कमरा छोड़कर चली जाओगी।

ई- तुम मुझे वचन दोगी कि तुम अपने शब्दों अथवा कार्यों से मुझे मेरे अपने बच्चों की दृष्टि में नीचे नहीं गिराओगी।

मिलेवा इन शर्तों को कैसे स्वीकार करती? अतः दोनों अलग हो गये। दोनों बेटों को लेकर मिलेवा ज़्यूरिख़ चली गयी जहाँ वह बच्चों को पालने में संघर्ष करती रही। उसने बच्चों के लिए अधिक धन की माँग की तो आइन्सटाइन ने उसका विरोध किया। उसने लिखा कि उसके पास और पैसा नहीं है, नहीं तो भेज देता। एक अन्य पत्र में उसने लिखा था- मैंने तुम्हारी धमकियों को अच्छी तरह समझ लिया है कि तुम इस स्थिति को लोगों को बताना चाहती हो। तुम्हारे पूर्व व्यवहार को देखर मैं तुमसे इससे अधिक आशा भी नहीं करता। तुम्हारा कोई भी क़दम मुझे चकित नहीं करेगा। तुम मेरे बच्चे मुझसे दूर ले गयी हो और उनके मन में उनके पिता के विरुद्ध ज़हर घोलने की कोशिश कर रही हो। (१५ सितम्बर १९१६)

सन् १९१६ में आइन्सटाइन ने संबंध विच्छेद करने का प्रस्ताव रखा। मिलेवा उस समय मानसिक रूप से अस्वस्थ थी। कुछ ठीक होने पर उसने समझौते के लिए पुनः प्रस्ताव रखा जिसमें उसे सफलता नहीं मिली।

आइन्स्टाइन ने लिखा था- "व्यक्तिगत संबंधों को व्यवस्थित करने के प्रयत्न मुझे दुबारा संबंध-विच्छेद (डाइवोर्स) का प्रस्ताव रखने को विवश कर रहे हैं। संबंध-विच्छेद के लिये जो कुछ भी आवश्यक होगा – मैंने उसे करने का दृढ़ निश्चय किया है। तुम्हारे सहयोग के एवज में मैं तुम्हें आर्थिक सहायता दे सकता हूँ। यदि मुझे "नोबेल पुरस्कार" मिल जाताहै (१९२१ में फ़िजिक्स के लिए मिला था) तो मैं उसे पूरी तरह से तुम्हें दे दूँगा। इतना बड़ा त्याग मैं तभी करूँगा जब तुम निर्विरोध संबंद-विच्छेद की स्वीकृति दोगी। यदि तुमने संबंध-विच्छेद को स्वीकार नहीं क्या तो मैं तुम्हें ६००० मार्क्स वार्षिक से अधिक एक पेनी भी नहीं दूँगा। (१ जनवरी १९१६)

प्रथम विश्व युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ था। उसने पुनः पत्र लिखा- "मैं यह देखने के लिए व्यग्र हूँ कि हमारा डाइवोर्स केस अधिक दिनों तक चलता है या विश्व युद्ध?" अंततः दोनों के बीच २४ फ़रवरी १९११ को संबंध-विच्छेद का निर्णय ले लिया गया। इसके बाद एल्सा लॉवेनथाल आइन्सटाइन की दूसरी पत्नी बनी।

इन पत्रों के आधार पर जहाँ एक ओर आइन्सटाइन का व्यक्तित्व अत्यंत भावुक प्रेमी तथा कोमल स्वभाव का प्रतीत होताहै, वहीं दूसरी ओर अत्यंत कठोर पति और स्वार्थी स्वभाव का भी लगता है।

उन्नीसवीं सदी की समाप्ति पर मिलेवा को लिखे उसके ५३ प्रेम-पत्रों को किसी अज्ञात व्यक्ति ने सबसे अधिक मूल्य ४२०००० डॉलर्स में खरीदा। इसमें नोबेल पुरस्कार विजेता ने "ऑरबिट ऑफ़ मरकरी एराउंड द सन" का गणना कार्य व अन्य शोध टिप्पणीयाँ दी थीं। उसने "जनरल थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी" का विकास किया था जो सृष्टि का मूलभूत सिद्धांत था। यह सन् १९१४ में प्रकाशित हुआ था। इस सिद्धान्त की पांडुलिपि के मूल्य से लगभग दोगुने मूल्य में बर्कले से प्राप्त उसके पत्रों का संग्रह बिका। विद्वानों का विचार है कि मिलेवा मैरिक स्वयं वैज्ञानिक थी और आइन्सटाइन की असाधारण प्रतिभा को प्रतिष्ठित करने वाले इस "थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी" सिद्धांत की आधारशिला मिलेवा की ही थी। शूलमन ने कहा है कि वह आइन्सटाइन को एक पवित्र-आत्मा जैसा मानता था, किन्तु इन पत्रों ने उनका रूप बदल दिया है। आइन्सटाइन ने कहा था, "सौ वर्षों बाद लोगों के लिए यह विश्वास करना कठिन होगा कि महात्मा गाँधी जैसा कोई व्यक्ति इस पृथ्वी पर जन्मा था। उसकी यह उक्ति सत्य प्रतीत होती है कि युद्ध की तैयारी और साथ ही उसे रोकने के उपाय एक ही समय में करना संभव नहीं है। एक मार्ग पर ही चलना संभव है- वह चाहे युद्ध के पक्ष में हो अथवा विरोध में हो। यदि मैं जानता कि मेरे परिश्रम का परिणाम इतना विध्वंसकारी होगा तो मैं कभी भी आणविक शक्ति का आविष्कार नहीं करता।

१४ मार्च, १८७९ में जन्मे इस महान वैज्ञानिक के इस कथन से उसके मनोभावों का आभास भी मिलता है। १७ अप्रैल, १९५५ में उसका स्वर्गवास हो गया।

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