पूछो पथराई आँखों से
काव्य साहित्य | कविता विशाल शाक्य20 Feb 2016
लौट के फिर न आने को
जो यादें देकर चले गए
जीवन भर संग निभाने के
जो वादे देकर चले गए
वो क्या जाने पीड़ा अपनी
और ऐतबार क्या होता है
पूछो पथराई आँखों से कि, इंतज़ार क्या होता है।
उनसे जो चूके एक क़दम
चोटी की क़ीमत जानो तुम
पेट जो भूखे हों उनसे
रोटी की क़ीमत जानो तुम
नींद की जो लेते गोली
बिस्तर की क़ीमत क्या जानें
सपनों में जो जीते हैं
दुनिया की हक़ीक़त क्या जानें
जो सात समन्दर पार पड़े
पूछो घर-द्वार क्या होता है
पूछो पथराई आँखों से कि, इंतज़ार क्या होता है।
आँखें जो अब हैं शिथिल हुईं
अपनों का रस्ता देख देख
जो विकल हो चुकी हैं अब तो
उम्मीद का सपना देख देख
जिनसे अपने भी रूठ चुके
आँसू आँखों के सूख चुके
जीवन है कठिन बना उनका
जिनको अपने ही लूट चुके
जो व्यस्त हो चुके हैं उनसे
पूछो कि यार क्या होता है
पूछो पथराई आँखों से कि, इंतज़ार क्या होता है।
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