पुल है कि मानता नहीं
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी अख़तर अली15 Aug 2025 (अंक: 282, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
पुल गिर गया।
इसमें कौन सी नई बात है। लोग तो ऐसे हाय–तौबा मचाये हैं मानो पहली बार पुल गिरा है। जिस दिन शिलान्यास हुआ था उसी दिन लोगों को समझ जाना चाहिए था कि यह गिरेगा। अपने देश के लोगों में ज़रा भी दूरदर्शिता नहीं है।
इसकी जाँच होगी?
हमने अपने स्तर पर जाँच करवा ली है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस पुल को तो बहुत पहले गिर जाना चाहिए था। इसने देर से गिर कर बहुत से लोगों का भारी नुक़्सान किया है। इस नुक़्सान की भरपाई क्या पुल का बाप करेगा?
इस हादसे में लोगों की मौत भी हुई है।
यह आत्महत्या है। जब वो देख रहे हैं कि यह पुलों के गिरने का मौसम है। नाँन स्टॉप पुलों के गिरने के समाचार आ रहे हैं फिर भी ये लोग पुल का इस्तेमाल कर रहे थे? न जाने यह बात लोगों को कब समझ आयेगी कि नदी हमेशा तैर कर पार करनी चाहिये।
क्या आप स्तीफ़ा देंगे?
क्यों देंगे? गिरे पुल और स्तीफ़ा हम दें। पुल को तो कोई कुछ नहीं कहता। आप लोगों ने यह बहुत ख़राब बात सीख ली है कि स्तीफ़ा दो। पुल गिर गया तो स्तीफ़ा दो, प्लेन गिर गया तो स्तीफ़ा दो, रुपया गिर गया तो स्तीफ़ा दो। कल को तुम्हारे किचन में छारा, चम्मच प्लेट भी गिर जायेगी तो कहोगे स्तीफ़ा दो।
आप किसे ज़िम्मेदार मानते हैं?
विपक्ष की साज़िश है। विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है कि उस दिन सुबह से ही विपक्ष के लोग पुल पर से भारी तादाद में आना-जाना कर रहे थे। सोचने की बात है कि वे हमारे बनाये रास्ते पर क्यों चल रहे थे? उस दिन पुल पर हमारा कोई कार्यकर्ता नहीं था।
कोई कार्यकर्ता क्यों नहीं था?
क्योंकि वे मूर्ख नहीं हैं। उन्हें उनकी सरकार की कार्य प्रणाली मालूम है। फिर हमारी पार्टी के लोगों ने तो क़सम खा रखी है कि पार्टी के बनाये मार्ग पर नहीं चलना है। जिन्होंने सरकार का निर्माण किया है वे सरकार के निर्माण को जानते हैं।
भविष्य में पुल को बचाने की क्या योजना है?
मैंने स्पष्ट निर्देश दे दिया है कि पुल बनाना है तो बनाओ कोई मनाही नहीं है लेकिन उसे आवागमन के लिये मत खोलो। वहाँ ऐसी व्यवस्था हो कि पुल पर परिंदा भी पर न मार सके। पुल के दोनों छोर पर भारी पुलिस बल तैनात हो ताकि कोई चुपके से भी पुल पर से वाहन न ले जा पाये। पुल पार करना देशद्रोह माना जाये।
पुल के गिरने को दो लाईन में क्या कहेंगे?
गिरते हैं शहसवार ही मैदान ए जंग में।
वो तिफ़्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले॥
(शहसवार=घुड़सवार; तिफ़्ल=बच्चा)
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