पुनर्जन्म
काव्य साहित्य | कविता गोविन्दा पाण्डेय ‘प्रियांशु’1 Aug 2022 (अंक: 210, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
अगले जन्म तुम प्रेत बनना
हवा की तरह संग डोलते रहना
शीशे में देखूँ तो अपनी शक़्ल में तुम्हारा चेहरा दिखाई दे
पानी में देखूँ तो तुम्हारा ही अक्स खिलखिलाए . . .
हरसिंगार की फुनगी पर जा बैठना
मुझ पर गुपचुप फूल बरसाना
कोई आदम जात जो तुम्हें चीन्ह ले अगर
तो वक़्त के हाथों से ओझल हो जाना
या जा खंडहरों की संधों में छिप जाना
या चिंघाड़ कर उन्हें डरा देना . . .
कोई देह नहीं
बस आत्मा . . .
कोई चाह नहींं
बस प्रेम . . .
कोई वर्जना नहींं
बस तपस्या . . .
कोई मुद्दत नहींं
यूँ बेइंतहा . . .
अँधेरों का अधिपति
बादलों पर सवार . . .
शहद सा मीठा
जंगल सा महकता . . .
आसमान सा आभास
कभी आग की आँच
कभी पानी की बौछार
कभी हवा सा ख़्याल
ऐसा रहे मेरा प्रेत॥ . . .
कभी न मरना
कभी न जुदा होना
मुझे वश में करने के
टोने टोटके करना
दिल चीर के दिखाना
हथेली पर चाँद उतारना
चाँदनी का पैरहन पहनाना
तारों से शृंगार करना
अगले जन्म तुम प्रेत बनना . . .
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