क़दम
काव्य साहित्य | कविता आशुतोष कुमार15 Dec 2019 (अंक: 146, द्वितीय, 2019 में प्रकाशित)
अपने आप में इतिहास हो जाओ वीरांगना
तुम्हे किसी संबल की ज़रूरत नहीं
न ही चाहिए कोई कंधा
तुम्हारी बाजुओं में वह बल है
जिसको बस अभ्यास की ज़रूरत
ज़रा सा अभ्यास करना है
जो मुक्तिप्रदायक होगा तुम्हारे लिए
तुम्हे नई पहचान देने के लिए
तो जागो और जगाओ आत्मबल को
मारो और मिटाओ रूढ़ि छल को
इसी पल इसी वर्तमान काल में
एक सुनहरे भविष्य के लिए,
हे वीरांगना पुनः कहता हूँ
एक ठोस क़दम उठा ही दो आज
लोगों की पिछड़ी मानसिकता, रूढ़ि परंपरा
सब कुछ क्रांति से जला ही दो आज
यह आज की क्रांति ही तुम्हारा कल है
यह तुम्हारा ही कल है
और सदा रहेगा यह कल तुम्हारा अगर
बस एक ठोस क़दम हिम्मत की उठा दो
बस एक ठोस क़दम ....!
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