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रिश्ते ख़त्म नहीं होते . . . 

कहते हैं—
दिली रिश्ते कभी ख़त्म नहीं होते! 
अगर होते भी हैं
तो कम से कम 
एक बचकाने बहाने के साथ
या फिर
बेतुकी-सी तू-तू मैं-मैं के बीच 
 . . .
फिर कभी ना मानने के लिए . . . 
 
तुम कभी मुँह मोड़ना चाहो
तो ये गुज़ारिश है 
यों ही छोड़ जाना . . . 
वो अधूरा आलिंगन
और 
वह सवाल भी 
जो पूछा था मैंने तुमसे कभी
 
छोड़ जाना यों ही 
उसे 
छटपटाते हुए . . . 
 
वो आधा उगा सूरज
और 
आधा डूबा हुआ चाँद
जो 
संगी थे हमारे 
छोड़ देना उन्हें भी
उनके अधूरेपन के पूरे सच के साथ
उम्र भर के लिए . . . 
 
और हाँ
वो अधूरी-सी मुलाक़ात
जो मुकम्मल होनी थी 
अब न होगी कभी 
 . . . 
मत सोचना
ऐसी कोई बेतुकी बात
और
मत रूठना
किसी बचकाने से बहाने पर
कभी ना मानने के लिए॥
 
मेरी जान! 
जानती हो तुम भी
मानता हूँ मैं भी . . . 
दिली रिश्ते कभी ख़त्म नहीं होते
और मैं 
इसे झुठलाना नहीं चाहता . . . 

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