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सबसे बड़ी शक्ति

मुझे प्रैक्टिस शुरू किये कुछ ही साल हुए थे। मेरे कम्पाउण्डर पंडितजी कभी-कभी आने में देरी कर देते थे। उन दिनों मेरे पास बिहार का एक लड़का महेन्द्र भी सीखने के मतलब से आता था हालाँकि वह अपने को गाँव का प्रैक्टिशनर कहता था। उसका ज्ञान भी झोला छाप डॉक्टर की तरह था। शायद इसीलिए वह कुछ समय मेरे पास रहना चाहता था। 

सुबह 11 बज चुके थे, मेरे कम्पाउण्डर पंडितजी अभी नहीं आये थे। तभी एक महिला 2 साल के बच्चे को लेकर आयी और बताया कि इसे सुबह से उल्टी हो रही हैं, कुछ भी नहीं पच रहा हैं। बच्चे को देखने के बाद मैंने उन्हें बताया कि ग़नीमत हैं अभी तक डीहाइड्रेशन नहीं है। मैंने महेन्द्र से बच्चे को 0.2 मि.ली. सिक्विल का इंजेक्शन लगाने को कहा। महेन्द्र इंजेक्शन लगाना जानता था और लगाता भी था। इंजेक्शन लगवाकर और दवा लेकर महिला बच्चे को लेकर चली गयी। पंडितजी आ चुके थे। अचानक मुझे कुछ ख़्याल आया और मैंने महेन्द्र से पूछा बच्चे को कितना इंजेक्शन लगाए हो? उसने तपाक से कहा, “जी 2 मि.ली.।”

मैंने फिर पूछा, “कितना?”

उसने फिर जवाब दिया, “जी 2 मि.ली.।”

मेरा दिमाग़ सन्न हो गया। जिस इंजेक्शन का बड़ों का डोज़ 1मि.ली. है और उसके बाद बड़ों को नींद आ जाती है उसकी 2 मि.ली. यानी 10 गुना ज़्यादा मात्रा बच्चे को दी गयी। मेरा मूड अपसेट हो गया। मैं न उस महिला को जनता था न उसका घर। मैं पंडितजी के ऊपर झल्ला गया , “सब आपकी वजह से हुआ। रोज़ लेट आने की आपको आदत पड़ गयी है। पहले इस बेवक़ूफ़ को भगाइये यहाँ से।”

महेन्द्र सॉरी-सॉरी कहने लगा पर मुझे उसकी शक्ल से नफ़रत हो रही थी। किसी तरह बाक़ी मरीज़ों को देख कर मैं घर आ गया। मैंने माँ दुर्गा से बच्चे कि सलामती कि विनती की। 

शाम को धड़कते दिल से मैं क्लिनिक पहुँचा। जाने क्या हाल होगा उस बच्चे का? मैं उसकी प्रतीक्षा करता रहा पर वो महिला नहीं आयी। रात में भी मैंने प्रार्थना की, मुझे विश्वास था कि देवी माँ मेरी ज़रूर मदद करेंगी क्यों
कि मैं किसी दूसरे के बच्चे के लिये आशीष माँग रहा था। 

अगले दिन वह महिला उस बच्चे को कंधे से टिकाये जब मेरी क्लिनिक में दाख़िल हुई तो मेरी धड़कनें तेज़ हो गयीं। मैंने धीरे से पूछा, “क्या रात से सो रहा है?” 

“नहीं, अभी सोया है और उल्टी तो कल ही बंद हो गयीं। अब दूध भी पी रहा है,” उस महिला ने बहुत ही सामान्य ढंग से जवाब दिया। मेरी रुकी साँसें क़ाबू में आ गयीं। मेने आँखें बंद कर माँ को शत-शत प्रणाम किया। 

चिकित्सा विज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते मैं आज तक यह नहीं समझ पाया की बच्चे में इंजेक्शन का दुष्प्रभाव क्यों नहीं दिखा? शायद विज्ञान से भी बड़ी कोई शक्ति है, सबसे बड़ी शक्ति। इसीलिए जब हम चिकित्सक सब कर के हार जाते हैं तो आख़िर में यही कहते है कि अब कोई चमत्कार ही कुछ कर सकता है और कभी-कभी चमत्कार होता भी है। 

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